उपद्रव हो चुके थे। परन्तु जिन परिस्थितियोंमें श्री गांधीको दिल्ली और पंजाबसे बाहर किया गया उनकी पूरी तरह जाँच करनेकी आवश्यकता है।
प्रायः मार्चके अन्तकी स्थितिका वर्णन पहले ही किया जा चुका है। ३० मार्चको हुए उपद्रवोंके बाद कुछ दिनोंतक दिल्ली में तनावकी जो तीव्र स्थिति रही उसने भारतके अन्य भागोंमें, जहाँ दिल्लीके दंगोंके समाचारसे काफी उत्तेजना फैल गई थी, सत्याग्रह आन्दोलनके खतरेकी सम्भावनाओंको अत्यधिक बढ़ा दिया। वस्तुतः उस दिनकी घटनाओंने शायद आन्दोलनके प्रवर्तकोंको उन खतरोंकी जो उनके प्रचारके साथ मौजूद थे, भली-भाँति चेतावनी दे दी होगी। परन्तु वास्तविक रूपमें परिस्थिति जैसीकी तैसी बनी रही। बढ़ती हुई उत्तेजनाके साथ आन्दोलन बिना रोक-टोक सारे देशमें फैलता रहा।
इसी नाजुक समयमें हमें सूचना मिली कि श्री गांधीने कानूनोंके विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन फिरसे तेजी के साथ शुरू कर दिया है और ९ तारीखको हमने सुना कि वे कल शामको बम्बईसे दिल्लीके लिए रवाना हो गये हैं। यह समाचार पाते ही हमने तुरन्त पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर और दिल्लीके मुख्य आयुक्त (चीफ कमिश्नर) से सलाह की। इन दोनों अधिकारियोंने सोचा कि स्थिति गम्भीर हो चुकी है; इसलिए श्री गांधीको अपने अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति देना अत्यन्त खतरनाक होगा। वे निश्चित रूप से वहाँ जाकर देशका कानून तोड़कर सत्याग्रह आन्दोलनके लिए अनुयायियोंको जुटाना चाहते थे। पंजाब में उन्हें गिरफ्तार करना और उनपर मुक़दमा चलाना सभी तरहसे विस्फोटका कारण बनता और उस प्रान्तमें आन्दोलनमें बड़ी संख्यामें उनके अनुयायियों के भरती होनेसे प्रायः निश्चित था कि तुरन्त सक्रिय प्रतिरोध होता और उपद्रव होते। मुख्य आयुक्तने सोचा कि श्री गांधीका दिल्लीमें केवल प्रवेश रोकनेका आदेश बहुत खतरनाक होगा, क्योंकि उसे लागू करनेका एकमात्र तरीका उन्हें दिल्ली प्रवेशपर कैद करना, रोकना और उस शहरमें अभियोग चलाना होगा। दूसरी तरफ, यदि उन्हें दिल्ली में प्रवेश करनेकी अनुमति दे दी गई तो बहुत सम्भव है कि वहाँ वे कानून तोड़ें और तब उन्हें गिरफ्तार करके उस अपराधके लिए उनपर मुकदमा चलाना पड़े। परिणाम प्रायः निश्चत है कि हालके गम्भीर दंगोंकी पुनरावृत्ति होगी। इन परिस्थितियों में भारत सरकारने पंजाब और दिल्लीकी स्थानीय सरकारोंको अधिकार दिया कि वे यह निर्देश देते हुए कि श्री गांधी बम्बई महाप्रान्तमें ही रहें, भारत रक्षा नियमोंमें नियम ३ (ख) के अन्तर्गत आदेश निकालें। भारत सरकारने उस समय सोचा और अब भी सोचती है कि श्री गांधी सरकारको ठप्प करनेके लिए चलाये गये आन्दोलनके प्रमुख संचालक थे, अतः इस तथ्यको दृष्टिमें रखते हुए यह मार्ग अपनाना बिलकुल सही था।
३४. इसी प्रकार यह भी इंगित किया गया है कि पंजाब सरकारने १० अप्रैलको डाक्टर किचलू और डा॰ सत्यपालके निर्वासनका जो आदेश दिया वह एक भड़कानेवाली कार्रवाई थी। इसीके कारण बादके उपद्रव हुए। उन्हें पहले ही आदेश जारी कर दिये गये थे कि वे सार्वजनिक भाषण न दें, और यह सच है कि उन्होंने ६ अप्रैलकी हड़तालसे तुरन्त पूर्व होनेवाली सभाओं में खुले रूपसे हिस्सा नहीं लिया था।