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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लगाता है कि इसीसे उनमें नाराजगी पैदा हुई। युद्धके दौरान बड़े जमींदारों और प्रमुख व्यक्तियोंने ग्रामीण क्षेत्रोंमें रंगरूटोंकी अधिक भरतीके लिए जो प्रयत्न किये थे उनसे इन्हें प्रमुखता मिल गई और इन्हें स्थानीय सरकारसे बहुत सम्मान मिलने लगा। इससे तथा अन्य कारणोंसे ग्रामीण वर्गों और व्यापारी तथा पेशेवर वर्गोंके बीच फूट डालनेवाली प्रवृत्ति जाग गई। इन्हीं व्यापारी तथा पेशेवर वर्गोंसे बुद्धिजीवी वर्गकी निष्पत्ति है। इसलिए सम्भवतः इस द्वितीय वर्ग में ऐसा भाव पैदा हो गया हो कि उसका राजनीतिक प्रभाव कम किया जा रहा है। भारत सरकार समितिसे सहमत है कि रौलट अधिनियमको गलत ढंगसे प्रस्तुत करना उपद्रवोंका मुख्य कारण था। अधिनियम इस प्रकार गलत ढंगसे सब जगह खुलकर प्रस्तुत किया गया। इसका जो हानिप्रद असर हुआ उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। सरकार अप्रैलके प्रारम्भतक असत्यके इस प्रचारसे अनभिज्ञ थी। इसके बाद उसने असत्यका खण्डन करनेके लिए तुरन्त कार्रवाई की। दुर्भाग्यकी बात है कि जिन्होंने अधिनियमपर आक्रमण किया था उन्होंने इस गलत प्रस्तुतीकरणका प्रभाव मिटानेके लिए न तो समाचारपत्रोंमें प्रयत्न किया और न सार्वजनिक मंचपर ही। जैसा कि अल्पमतका कहना है कि पंजाबके उपद्रवोंका कारण प्रान्त में सत्याग्रह सिद्धान्तको सक्रिय रूपमें सामने लाना नहीं था, यह चाहे सही हो या गलत हम अपना यह विश्वास अवश्यमेव लिख देना चाहते हैं कि जो लोग सत्याग्रह आन्दोलनमें शरीक हुए, उनमें से बहुतसे तो इस इरादेसे शरीक हुए कि इसके जरिये उपद्रवोंको भड़काया जाये। अन्तमें हम यह कहना चाहते हैं कि उपद्रवोंके स्वरूप के सम्बन्धमें अल्पमतकी राय तथ्योंके उन निष्कर्षोंसे जो उसने स्वयं निकाले हैं, प्रभावहीन हो जाती है, जब कि बहुमतका यह निष्कर्ष कि वह आन्दोलन दंगोंसे शुरू होकर विद्रोह बन गया, सम्राट्के विरुद्ध युद्ध छेड़नेके अपराधमें लोगोंपर विभिन्न अदालतों में जो बहुत-से अभियोग चलाये गये उनमें दी गई सजाओंसे पुष्ट होता है। भारत सरकारकी राय में ये मुकदमें उपद्रवोंके सही स्वरूपका निर्णय करने में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

सचाई जो कुछ भी हो, उन कारणोंके सम्बन्धमें जिनसे ये उपद्रव प्रारम्भ हुए और इनके विस्फोटका स्वरूप और प्रभाव जितना गम्भीर था उसके सम्बन्धमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुल मिलाकर भारतकी राजनिष्ठा अविचलित रही और पंजाब में भी जनताके अधिकतम भागने अपना यश अक्षुण्ण रखा। वह उस छूतकी बीमारीका शिकार नहीं बना जिसने उसके एक अंशपर भयानक रूप से कब्जा जमा लिया था।

३३. उपद्रवोंके कारणोंपर विचार करते समय एक मुद्दा सामने आता है जिसपर भारत सरकार विस्तारसे लिखना चाहती है। यह कहा गया है कि भारत सरकारने श्री गांधी, डा॰ किचलू तथा डा॰ सत्यपाल जैसे प्रमुख राजनीतिज्ञोंके विरुद्ध जो कारेंवाई की उसके कारण ये उपद्रव हुए; उनका साथ-साथ होना केवल संयोग नहीं है। यह बात पहले बताये गये इस तथ्य से काफी हदतक गलत साबित हो चुकी है कि इस प्रकारकी कोई कार्रवाई करनेके काफी पहले सत्याग्रह आन्दोलनसे दिल्ली में गम्भीर