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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हुए। वजीराबाद में एक उपद्रवी भीड़ रेलवेकी इमारत से हटाई गई, परन्तु उसने तार प्रणालीको भारी नुकसान पहुँचाया। उसने रेलके पुलोंको भी आग लगाई। स्कॉटलैंड निवासी एक मिशनरीके बँगलेको जलाया और लूटा तथा डाक गाड़ीको नष्ट करनेका भी असफल प्रयत्न किया। अकालगढ़ और हाफिजाबादमें टेलीग्राफके तारोंको अत्यधिक हानि पहुँचाई गई। हाफिजाबादमें, मिलिटरी फार्म विभागका एक अधिकारी सौभाग्यवश डरावनी भीड़के घातक इरादोंसे बच गया। शेखूपुरा उपसंभाग में चूहड़खाना, शेखूपुरा, साँगला और अन्य स्थानोंपर तार तथा रेल प्रणालीपर लगातार दृढ़ताके साथ हमले किये गये, कमसे-कम तीन रेलवे स्टेशन नष्ट हो गये और इसके साथ ही कुछ रेलवे तथा सरकारी कर्मचारियोंपर नृशंस हमले किये गये। लाहौरसे एक सशस्त्र रेलगाड़ी सहायतार्थ भेजी गई और उस गाड़ीसे शारकपुरके अतिरिक्त सहायक आयुक्त रायसाहब लाला श्रीराम सूदके आदेशसे चूड़हखानामें गोली चलाई गई। समितिकी राय है कि इस अधिकारीने कठिन परिस्थितिमें मुस्तैदीके साथ निर्णय लेकर कार्य किया। अल्पमतकी दूसरी तरहकी राय है और वह उसकी निन्दा इस आधारपर करती है कि उसका इरादा दंड देनेका था, इसलिए गोली चलाना उचित नहीं था। इन स्थानोंके उपद्रवोंसे उत्पन्न होनेवाली सभी बातोंमें बहुमतकी राय और उसके इस कथनसे भारत सरकार सहमत है कि लाला श्रीराम सूदने अपने कर्त्तव्यपालनमें मुस्तैदी दिखाई और निर्णायक बुद्धिका परिचय दिया।

२८. अध्याय ६ और ७ में उन घटनाओंका वर्णन है जो क्रमशः गुजरात तथा लायलपुर जिलोंमें हुईं। इन क्षेत्रोंमें उपद्रवोंका मुख्य स्वरूप रेलवे संचार व्यवस्था तथा टेलीग्राफके तारोंपर हमला करना था। १५ अप्रैलको गुजरात में उपद्रवी भीड़पर गोली चलानी पड़ी। कोई हताहत नहीं हुआ और भीड़ तितर-बितर कर दी गई। १७ अप्रैलको मलकवालमें एक रेलगाड़ी पटरी से उतार दी गई जिसमें दो की मृत्यु हुई। लायलपुर में अत्यन्त परेशान करनेवाली मुख्य बात थी उत्तेजनात्मक और अपराधात्मक इश्तिहारोंका लगातार प्रदर्शन। इनमें महात्मा गांधीके पुनीत नामपर धोखेबाज अंग्रेजोंके साथ आमरण युद्ध और अंग्रेज औरतोंको अपमानित करनेके लिए भारतीयोंका आह्वान किया गया था। कई दिनोंतक बड़ा तनाव रहा और १९०७ में हुए उपद्रवोंकी भूमिकाके कारण सरकारके लिए लायलपुरकी स्थिति चिन्ताका विषय बन गई। स्थिति इतनी गम्भीर हो गई थी कि शहरके सारे यूरोपीय, सुरक्षाके लिए सिविल लाइन्सके दो मकानों में इकट्ठे हो गये, परन्तु वास्तवमें कुछ स्थानोंपर टेलीग्राफके तार कटने के सिवा और कोई हिंसा नहीं हुई। १७ अप्रैलको फौजके आ जानेसे और उपद्रव नहीं हो पाये।

समितिने पंजाबके बहुतसे अन्य नगरों और स्थानोंमें हुए हिंसापूर्ण कार्यों और उपद्रवोंका विस्तारसे वर्णन नहीं किया है परन्तु उन्हें रिपोर्टके साथ संलग्न तारीखवार विवरण में दे दिया गया है। इसलिए उस समय जब कि फौजी कानूनकी घोषणा की गई, स्थानीय सरकारने स्थितिको जिस तरह से देखा उसपर विचार करते हुए उक्त घटनाओं पर भी ध्यान देना जरूरी है।