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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

३०,००० है। यहाँ भी अन्य जगहोंकी तरह रौलट विधेयकके खिलाफ आम आन्दोलन हुआ और ६ अप्रैलको पूरी हड़तालकी गई परन्तु १३ तक कोई हिंसा नहीं हुई और न इसका किसीको कुछ गुमान ही था; किन्तु जब लाहौरमें हुई १० तारीख की घटनाओंका समाचार वहाँ पहुँचा तब स्थानीय जनता उत्तेजित हो उठी। उस शाम अधिकारियोंको पता चला कि अगले दिन और प्रदर्शन करनेका इरादा किया जा रहा है। कार्यवाहक उप-आयुक्त ने पुलिसको लेकर आवश्यक प्रबन्ध किया। समिति उन उपद्रवोंका जो शहरमें १४ तारीखको हुए थे और जिनमें एक रेलगाड़ीपर हमला, गुरुकुल पुल तथा कई इमारतोंको जलाना और रेल तथा तार संचार-साधनोंको अनेक प्रकारसे क्षति पहुँचाना शामिल हैं, विस्तारसे वर्णन करती है। भीड़ने पूरी तरह आधिपत्य प्राप्त कर लिया था और सम्पत्तिका जो मूर्खतापूर्ण विनाश किया जा रहा था उसे रोकने या यूरोपीयों और राजभक्त लोगोंकी रक्षा करनेमें पुलिस असमर्थ हो गई थी। डाकखाना, राजस्व कार्यालय, गिरजाघर और जिला अदालत सब जला दिये गये। जेल और पुलिस लाइनपर हमला किया गया परन्तु पुलिसके गोली चलानेसे उनकी रक्षा हो गई। इसके बाद भीड़ रेलवे स्टेशनकी ओर मुड़ी। उसने इमारतों और मालगोदामों में आग लगा दी और उनका सामान लूट लिया। जिन यूरोपीय परिवारोंको एहतियातके तौरपर पहली शामको दूर नहीं भेजा गया था वे सुरक्षाके लिए खजाने में इकट्ठे हुए। खजाने की रक्षा एक छोटी पुलिस गारद कर रही थी। इस बीच हर तरफ यातायात अवरुद्ध कर दिया गया था; दिन खत्म होनेतक शहरके सामनेकी रेलवे पटरीके साथ लगे लगभग सारे तार कुछ मीलोंतक काट दिये गये थे। यातायातके इस अवरोधके कारण गुजराँवालाको साधारण फौजी मदद भेज सकना असम्भव हो गया। शहरको राहत पहुँचाने के लिए हवाई जहाजोंके उपयोगकी अनुमति ऐसी परिस्थितिमें दी गई। थी। जब पुलिस प्रायः थक चुकी थी तब तीसरे पहर ३ बजेके करीब लाहौरसे शहरके ऊपर ३ हवाई जहाज पहुँचे। उस रात ९ बजेतक फोजका पहला दस्ता नहीं पहुँचा था।

गुजराँवालाकी घटनाओंके बारेमें बहुमतके महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष इस प्रकार हैं : (१) श्री हैरनका भीड़पर गोली चलानेका कार्य बिल्कुल सही है; (२) जब भीड़ने डाकखानेपर हमला किया, उस समय कार्यवाहक उप-आयुक्तका गोली चलानेकी अनुमति देने से इनकार करना, आलोचनाके योग्य है; (३) अमृतसरमें जो कुछ किया गया था उसीको भीड़ यहाँ दोहराना चाहती थी; (४) उन परिस्थितियों में बमवाहक विमानोंका उपयोग करनेका फैसला उचित था, हालांकि असैनिक उपद्रवोंमें विमानोंका उपयोग करनेका फैसला अत्यन्त आपत्कालके सिवा सही नहीं ठहराया जा सकता। और (५) मोटे तौरपर विमान अधिकारी मेजर कारबरीका काम उचित था, परन्तु उनके निर्देश सदोष थे। इन सभी मुद्दोंपर भारत सरकार समिति से पूर्णतया सहमत है और मेजर हैरनकी, जिन्होंने अत्यन्त कठिन परिस्थितियोंमें उपर्युक्त कार्य किया, प्रशंसा करना चाहती है। समितिका विचार है कि पास ही स्थित दो गाँवों और खालसा हाईस्कूलपर बम गिराना सही नहीं कहा जा सकता। परन्तु इसमें दोष