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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अत्यधिक उत्तेजित कर दिया था और श्री गांधीकी गिरफ्तारी और अमृतसरमें हुए उपद्रवोंके समाचारसे १०की शामको यह उत्तेजना चरम सीमापर पहुँच गई। शहरमें भीड़ जमा हो गई और जब पुलिसने उसे सिविल लाइन्सकी ओर बढ़नेसे रोका तो उसने पुलिसपर हावी होने की कोशिश की। समिति ने उन परिस्थितियोंपर सावधानीसे विचार किया है जिनके अन्तर्गत जिला न्यायाधीश श्री फायसन और पुलिस सुपरिटेंडेंट श्री ब्राडवेके हुक्म से उसी दिन तीसरे पहरको भीड़पर तीन बार गोली चलाई गई। समिति इन दोनों अधिकारियोंके कामको पूरी तरह सही मानती है। भारत सरकार सोच भी नहीं सकती कि इसके सिवा कोई और निष्कर्ष निकालना सम्भव है। सिविल लाइन्सकी ओर बढ़ती हुई भीड़को अमृतसर में हुए उपद्रवोंके बारेमें पता था; उसके प्रयत्नोंको विफल करनेकी कोशिश न करना घातक होता। भीड़को सिविल लाइन्समें घुसने देनेके बाद लाहौरकी स्थितिका विवरण समितिने इस प्रकार दिया है :

"१० अप्रैलकी रातको और बादके कुछ दिनोंतक लाहौर शहर भयानक रूपसे विक्षोभकी स्थिति में था। उस रातको सिविल स्टेशन और उसके आस-पासके इलाकेको बचानके लिए फौजी उपाय किये गये। जिस स्थानसे पुलिस अस्थायी तौरपर हटा ली गई थी, वहाँ शहरमें कोई भी यूरोपीय सुरक्षित रूप से प्रवेश नहीं कर सकता था। लगभग २ दिनतक शहरमें भीड़का राज्य रहा।

उसके बाद समिति ११ तारीखकी घटनाओंका वर्णन करती है, बादशाही मस्जिदमें हिन्दू-मुसलमानोंकी उत्तेजित भीड़के सामने आग भड़कानेवाले भाषण दिये गये, डंडा फौजके नामसे संगठित उपद्रवियोंका गिरोह लाठियोंसे लैस होकर शहर में 'पंचम जॉर्ज मुर्दाबाद' के नारे लगाते हुए घूमा और उसने महामहिम सम्राट् और सम्राज्ञीकी तसवीरें तोड़ीं। ११की सुबह किलेकी चहारदिवारी गिरा देनेके प्रयत्न किये गये। वहाँ कुछ उपद्रवियोंने रक्षा करनेवाले ब्रिटिश सिपाहियोंपर थूका और उन्हें "सफेद सूअर" कहा। उसी दिन रेलवे कारखानेपर हमला किया गया और कर्मचारियोंकी हड़ताल करवाने के पूरे प्रयत्न किये गये। १२को बादशाही मस्जिदमें दूसरी सभा की गई और भीड़न फौजदारी जाँच विभागके एक अधिकारीको बहुत अधिक पीटा। उसी दिन स्थितिपर पुनः नियन्त्रण प्राप्त करनेके लिए पुलिस और फौजके मिलेजुले दस्तेन शहरमें कूच किया। हीरामंडी में जमा भीड़न कूचमें रुकावट डाली। जब जिला मजिस्ट्रेटने उसे तितर-बितर होने का निर्देश दिया तो उसने इनकार कर दिया और पुलिसके उस छोटे-से अग्रिम दस्तेपर जो मजिस्ट्रेट के साथ था, पत्थर चलाना शुरू कर दिया। श्री फायसनको गोली चलाने के लिए मजबूर होना पड़ा, फलतः एक आदमी मारा गया और बीस घायल हुए। समितिकी राय में उस दिन भीड़को तितर-बितर करना जरूरी था। यदि पुलिस और फौज उस भीड़ को तितर-बितर न करती तो लाहौरमें व्यवस्था कायम करनेकी सारी आशाएँ समाप्त हो जातीं। ये तथ्य कि गोलियाँ पुलिसने ही चलाई; फौजी गोली-बारूद से युक्त फौजके बजाय मोटे छरोंसे लैस पुलिसकी ही भीड़से मुठभेड़ कराई गई; पुलिसने बहुत कम गोलियाँ चलाई और भीड़को चेतावनी दी गई,