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परिशिष्ट


प्रारम्भिक जाँचके प्रश्नपर विचार करते समय जलियाँवाला बागके मामलेपर मुख्य रूप से ध्यान दिया गया और निर्णय हो जानेपर तथ्य एकत्र किये जाने लगे। जलियाँवाला बागमें गोली चलानेकी भारत सरकारको उपलब्ध पहली रिपोर्टमें हताहतोंकी संख्या २०० बताई गई थी। इसके दो दिन बाद जो दूसरी रिपोर्ट मिली इसमें यही संख्या मृत व्यक्तियोंकी बताई गई थी। दोनों रिपोर्टें तुरन्त उपनिवेश सचिवको भेज दी गईं। अधिक विस्तृत रिपोर्ट काफी बादतक नहीं प्राप्त हुई। अप्रैलके उत्तरार्धमें जनरल डायर समस्त उपद्रवग्रस्त क्षेत्र में सैनिक संचरण कराते रहे। मईके बिलकुल शुरू में अफगान युद्ध छिड़ जानेसे वे कोहाट ब्रिगेडके कमांडर चुने गये। उस तारीखसे जुलाईके अन्ततक वे लगातार युद्ध क्षेत्रमें कार्य करते रहे; और अमृतसर में फौजी कानूनके प्रशासन तथा जलियाँवाला बागमें गोली चलानेके बारेमें उनकी रिपोर्ट अगस्त मासतक नहीं मिल सकी। इसी बीच स्थानीय सरकार हताहतोंकी सही संख्याका पता लगानके लिए जाँच करवाती रही। अगस्त के अन्ततक प्राप्त सूचनासे जिसकी पुष्टि सेवासमिति द्वारा की गई निजी पड़तालके परिणामोंकी जाँचसे भी हुई, प्रकट हुआ कि उस समय निश्चित मृतसंख्या २९९ थी और यही संख्या ११ सितम्बरको शिमलामें हुई शाही विधान परिषद्को बैठकमें भी बताई गई। परिषद्के इसी अधिवेशनमें पंजाबमें हुई घटनाओंके पूरे ब्यौरे दिये गये और जलियाँवाला बागकी कहानीपर विस्तारसे बहस हुई। बहसकी कार्यवाहीकी पूरी रिपोर्ट हमेशा की तरह प्रकाशित की गई और भारत में उसपर पूरा-पूरा ध्यान दिया गया। सरकारी जाँच जारी रही और चार महीने बाद पंजाब सरकारके मुख्य सचिवने समितिके सामने गवाही देते हुए बताया कि तबतक निर्धारित की गई मृत व्यक्तियोंकी संख्या कुल मिलाकर ३७९ थी। सेवा समिति द्वारा दी गई सूचनाकी पड़तालपर आधारित स्थानीय सरकारकी बादकी रिपोर्ट में घायलोंकी संख्या १९२ बताई गई है।

समिति नियुक्त करनके फैसलेके समय से सरकार यही मुनासिब समझती रहीं कि जहाँतक हो सके उन बातोंपर कोई सार्वजनिक टिप्पणी न की जाये जिनकी जाँच करना समितिका कर्त्तव्य है और किसी अधिकारीके आचरणपर भी समितिकी रिपोर्ट प्राप्त होने तक कोई राय न दी जाये। यह आरोप उचित नहीं प्रतीत होता कि इन घटनाओंके घटनकी तारीखसे लेकर समितिके सामने जनरल डायरके बयान प्रकाशित होने तक, भारत सरकार जानबूझकर सच्चाईको दबाने की नीति अपनाये रही। उपर्युक्त तथ्य इस आरोपका स्पष्ट रूप से खंडन करते हैं।

निस्संदेह यह खेदका विषय है कि जो कुछ वास्तवमें हुआ उसके बारेमें पूरी जानकारी एक औपचारिक जाँचके पहले प्राप्त नहीं हो सकी। परन्तु अब यह काण्ड समाप्त हो चुका है और इंग्लैंड तथा भारत दोनों जगह सरकार और जनताको तथ्योंकी पूरी जानकारी हो गई है, इसलिए दोषारोपण और खेद प्रकाशनसे कोई लाभ नहीं होगा।

२३. अध्याय ४में लाहौर जिलेके उपद्रवोंपर विचार किया गया है। स्वयं राजधानी में रौलट विधेयकके खिलाफ आन्दोलन और ६ अप्रैलकी पूर्ण हड़तालने जनताको