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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हम यहाँ यह भी कहना चाहते हैं कि हमारे माननीय सहयोगी श्री शफी सामान्य तौरपर अल्पमत द्वारा की गई अमृतसर सम्बन्धी तथ्योंकी खोज और उससे निकाले गये निष्कर्षोंसे, जहाँ भी वे बहुमत द्वारा निकाले गये निष्कर्षोंसे, भिन्न हैं, सहमत हैं। वे इस सिद्धान्तको अस्वीकार करते हैं कि जलियाँवाला बागमें जनरल डायरके कार्यने पंजाबकी स्थितिको सँभाला और गदरके पैमानेपर होनेवाले विद्रोहको रोका। उनकी रायमें १४ अप्रैल और उसके बाद गुजराँवाला, गुजरात और लायलपुर जिलोंमें हुए उपद्रव जलियाँवाला बागके मामलेसे उत्पन्न संक्षोभके परिणाम थे।

२२. इस दुर्घटनाकी बात हम इस आरोपका उल्लेख किये बिना समाप्त नहीं कर सकते कि इसके चारों ओर जानबूझकर गोपनीयताका आवरण डाल दिया गया था, और लाचार होकर जनताको यह अनुमान लगाना पड़ा था कि यह कुटिलतापूर्ण नीति पिछले दिसम्बरमें जाँच समिति के सामने जो तथ्य प्रकट हुए उनके कारण ही बाधित हुई। यह आक्षेप निराधार है। जब उपद्रव प्रारम्भ हुए तब तात्कालिक आवश्यकता उन्हें दबा देने और व्यवस्था कायम की जानेकी थी। अत्यन्त प्रारम्भिक अवस्थामें ही परमश्रेष्ठ वाइसरायने फैसला किया कि सरकारको उपद्रवों और फौजी कानूनके प्रशासनकी जाँच करानी चाहिए। आप इस रायसे सहमत हुए और मईके तीसरे सप्ताह में ब्रिटिश लोकसभा में भाषण देते हुए आपने यह घोषणा की :

समय-समयपर प्रश्न और जाँचकी माँग किये जानेके कारण जिन उपद्रवोंका में विवरण देता आया हूँ, वाइसराय उनकी जाँचकी बात प्रारम्भ से ही सोच रहे हैं। इतने बड़े पैमानेपर उपद्रव हो जायें तो उनके कारणों और उनको दबाने के लिए अपनाये गये तरीकोंकी जाँचका न किया जाना असम्भव है। परन्तु अबतक जाँचकी कोई घोषणा इस कारण नहीं की गई कि आग बुझा देनेके बाद ही हम जाँचकी बात उठायें।

इस सुझावके साथ यह घोषणा बिलकुल मेल नहीं खाती कि उक्त घटनाओंके विवरणको दबाने या छिपानेके लिए भारत सरकार या उपनिवेश मन्त्रीकी तरफसे कोई षड्यन्त्र किया गया था।

इसके बाद हम लोगोंके बीच और भी पत्र-व्यवहार हुआ और उसके फलस्वरूप वर्त्तमान समिति नियुक्त की गई। समितिके गठनके प्रश्नपर बहुत सावधानीसे विचार किया गया क्योंकि सरकार इस संस्थाको प्रभावशाली बनानेके लिए कृतसंकल्प थी; वह चाहती थी कि इसमें ऐसे व्यक्ति हों जिन्हें उच्च कोटिका न्याय सम्बन्धी अनुभव हो, और जिनपर (इंग्लैंड तथा भारत) दोनों देशोंकी जनता पूरी तरह विश्वास कर सके। शाही विधान परिषद् (इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल) के पिछले सितम्बर के वसन्तकालीन अधिवेशन में समितिकी आसन्न नियुक्तिके बारेमें एक घोषणा की गई थी। इस प्रश्नपर भी सावधानी से विचार किया गया कि समितिकी बैठक होने तक सामान्य जाँचके अलावा कुछ विशेष घटनाओंकी जाँच रोक ली जाये या नहीं, या उसकी प्रारम्भिक जाँच बैठकके पहले प्रारम्भ की जाये या नहीं। अन्तमें हमने आपकी सहमति से तय किया कि बैठकके पहले इस प्रकारकी प्रारम्भिक जाँच करना अनुपयुक्त होगा।