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परिशिष्ट

थे, उन सबको, यदि उचित रूप से पूर्व सूचना दी जाती तो वास्तवमें उन्हें सभा छोड़नेका अवसर मिल जाता। भारत सरकार इस विचारसे सहमत हैं कि ऐसा कोई आपत्काल उपस्थित नहीं हो गया था कि इतनी सावधानी बरतना सम्भव नहीं बचा था।

भीड़ छँटना शुरू होनेपर भी जनरल डायरका उसपर गोली चलाते जाना भारत सरकारकी निगाहमें असमर्थनीय है। उन्होंने लगातार दस मिनट गोली चलवाई और इस अवधि में १६५० गोलियाँ चलीं। सम्भव है कि जनरल डायरके कार्यसे अमृतसर और पासके केन्द्रीय पंजाबके जिलोंमें कानून भंग करनेवाले लोग बहुत डर गये और उन्होंने फिर अव्यवस्थाका प्रदर्शन नहीं किया। फिर भी भारत सरकार इसे लगातार गोली चलानेका उचित कारण स्वीकार नहीं कर सकती। यह गोलीबार अवसरकी आवश्यकतासे बहुत अधिक था। उस समय अमृतसरकी जो स्थिति थी उसे देखते हुए भीड़को तितर-बितर करना सचमुच जरूरी था और इस उद्देश्यकी सिद्धिके लिए कठोर उपायोंकी आवश्यकता थी। फिर भी हमारी रायमें और भी अधिक सीमित फौजी शक्ति इस कामको पूरा करन में पर्याप्त हो सकती थी और इसमें कोई सन्देह नहीं कि जनरल डायरके कार्यने ऐसी कटुताकी भावना पैदा कर दी है कि उसे मिटन में अब काफी समय लगेगा। निस्सन्देह उनके सामने एक अत्यन्त कठिन स्थिति उपस्थित थी। उन्हें आशंका थी कि अमृतसर अन्य स्थानोंसे कट जायेगा; और साथ ही १० अप्रैलकी भयानक घटनाओंके बाद भीड़का प्रभाव बने रहनेका खतरा भी था। इन सब बातोंपर पूरा ध्यान देते हुए, हम इस सुचिन्तित परिणामपर पहुँचे हैं कि जनरल डायरने मामलेपर जरूरतसे ज्यादा कार्रवाई की और अपने कर्त्तव्य के बारेमें गलत धारणा बनाई जिसके परिणामस्वरूप शोचनीय और अनावश्यक हत्याएँ हुईं। यद्यपि हमें विवश होकर यह निर्णय करना पड़ता है, फिर भी हमें विश्वास है, जनरल डायरने अपने कामको सही मानकर ईमानदारीसे आचरण किया और हमारे विचारमें उस समय उनके कार्यके परिणामस्वरूप उपद्रव उस हदतक बढ़ने से रुक गये जिसका आज अन्दाज लगा पाना कठिन है। पंजाबके बहुत-से बुद्धिमान पर्यवेक्षकोंकी भी यही राय थी। अब जलियाँवाला बागमें गोलीकांडके बाद डाक्टरी सहायताके प्रबन्धके अभावका प्रश्न रह जाता है। यहाँ भी हमें अपना गहरा खेद व्यक्त करना चाहिए क्योंकि सैनिक या असैनिक अधिकारियोंने मृतकों को हटाने या घायलोंको मदद देनेका कोई प्रबन्ध नहीं किया। जलियांवाला बागमें उठाये गये कदमको सही बतानेके लिए अल्पमत सर माइकेल ओ'डायरकी आलोचना करता है। इस स्थानपर भूतपूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नरने जिन परिस्थितियोंमें अपनी स्वीकृति भेजी थी उनके बारेमें दिये गये उनके विवरण में भारत सरकार कुछ भी नहीं जोड़ना चाहती। किन्तु जिस कठिन स्थितिमें सर माइकेल ओ'डायर फँस गये थे, उसका पूरा ध्यान रखते हुए भारत सरकार समझती है कि यदि वे जनरल डायरके कार्यका अनुमोदन करनेसे पूर्व गोली चलानेके तथ्यों और परिस्थितियोंकी सही-सही और पूरी-पूरी जानकारी प्राप्त करनेका उपाय कर लेते तो वह अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य होता।