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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं बनती; क्योंकि नृशंस शासकोंकी ओरसे किये गये जुल्मोंका औचित्य सिद्ध करनेके लिए यह तर्क तो हमेशा ही दिया जाता है। अल्पमत बहुमत से इस बातपर सहमत नहीं कि बहुत करके भीड़का बिना गोली चलाये तितर-बितर किया जाना सम्भव नहीं था। अल्पमतने अपने इस विचारकी पुष्टिके लिए स्वयं जनरल डायरको उद्धृत किया है और उनके कार्यको अमानवीय और अब्रिटिश बताया है क्योंकि इससे भारतमें ब्रिटिश शासनको काफी नुकसान पहुँचा है। उसकी रायमें उनका आचरण उनकी इस निश्चित धारणाका परिणाम है कि भारतका शासन तलवारके बलपर होना चाहिए। उनकी इस बात के लिए भी इसने निन्दा की है कि उन्होंने मृतकोंको हटानेका और घायलोंकी देखभालका प्रबन्ध नहीं किया। अन्तमें वह पंजाब सरकारकी आलोचना करता है कि वह अविलम्ब हताहतोंकी संख्या निश्चित नहीं कर सकी। यहाँपर यह कह देना उचित होगा कि सरकारी जाँचोंके अनुसार हताहतोंमें ३७९ मृतक और १९२ घायल थे। इन जाँचों में सेवा समिति (एक समाजसेवी संस्था) द्वारा एकत्र की गई सूचनाकी पड़ताल भी शामिल है। यह प्रायः निश्चित है कि घायलोंकी संख्या में उन लोगोंको नहीं गिना गया जिनपर हल्की चोटें आई थीं। लेकिन हत और गम्भीर रूपसे आहत लोगोंकी अमित संख्याके रूपमें ये संख्यायें, अनुपात के नियमपर आधारित किसी भी अन्य अनुमित संख्यासे—मसलन् जाँच समितिके सामने अपनी गवाही में जनरल डायरने जिसे संभाव्य बताया है, उससे—सत्यके ज्यादा नजदीक मालूम होती हैं।

२१. बहुमत और अल्पमत द्वारा की गई जनरल डायरकी निन्दाकी मात्रामें अन्तर होनेसे और इंग्लैंड तथा भारत दोनों देशों में जलियाँवाला बागकी घटनाओंकी ओर जो ध्यान आकर्षित हुआ उससे सरकारके लिए इस बातकी जाँच करना आवश्यक हो गया कि किस हदतक जनरल डायरको दोषी ठहराया जाये। जिन विशेष निष्कर्षोंके आधारपर उनके कार्यकी निन्दा की गई है, उन्हें देखते हुए हमारा विचार है कि सभाओंको निषिद्ध करनेवाले आदेशोंका व्यापक रूपसे प्रचार किया जाना चाहिए था और उन इश्तिहारोंको विशेष रूपसे जलियाँवाला बागमें लगवाना चाहिए था; क्योंकि राजनीतिक सभाएँ ज्यादातर वहीं होती हैं। बैसाखी मेलेमें भी सूचना दी जा सकती थी; वहाँ आसपासके गाँवोंसे बहुतसे लोग जमा हुए थे। साथ ही यह बात भी ठीक है कि स्वयं जनरल डायरकी मौजूदगी में नगाड़े बजाकर घोषणा की गई थी और शहरमें १९ जगहोंपर नोटिस लगाये गये थे, इसलिए इसमें सन्देह नहीं किया जा सकता कि सभामें उपस्थित होनेवाले अधिकांश अमृतसर निवासियोंको आदेशोंके बारेमें मालूम था और वे उनका उल्लंघन करनेके लिए एकत्र हुए थे।

भारत सरकार इस बात में समितिसे सहमत है कि जनरल डायरको गोली चलानेसे पहले भीड़को चेतावनी देनी चाहिए थी। यह सच है कि उनके साथ बहुत थोड़ी फौज थी और इस परिस्थितिको देखते हुए तथा उपद्रवकारियोंकी पहलेकी सफलताओंको देखते हुए यह सर्वथा असम्भव था कि उत्तेजित और चुनौती देनेवाली भीड़ केवल चेतावनी देतेपर तितर-बितर हो जाती; परन्तु जिन्हें आदेशकी जानकारी नहीं थी, जिनमें बैसाखी मेला देखनेके लिए आये हुए ग्रामीण और अन्य लोग शामिल