उतार दिये गये थे, उनकी यादगार किसी-न-किसी रूपमें ताजी और स्थायी बनाये रहें। यह एक राष्ट्रीय महत्त्वकी घटना थी, जिसे विस्मृत नहीं होने दिया जा सकता; और हम इस नतीजेपर पहुँचे कि इस उद्देश्यको पूरा करनेका इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं होगा कि निर्दोष लोगोंके रक्तसे रंजित इस पवित्र स्थलको लेकर उसका कुछ वैसा उपयोग किया जाये, जैसा हमने ऊपर सुझाया है। हम विश्वास करते हैं कि दल आदिका खयाल किये बिना सब लोग, जिनमें अंग्रेज भी शामिल है, स्मारकके लिए चन्दा देंगे और समितिके निवेदनका उत्तर अभिलेख तथा बागके इस्तेमालके सम्बन्धमें अपने सुझावोंके रूपमें देनेकी कृपा करेंगे।
मो० क० गांधी
मदनमोहन मालवीय
मोतीलाल नेहरू
श्रद्धानन्द
हरकिशनलाल
किचलू
गिरधारीलाल
२९. पंजाबकी चिट्ठी-१२
लाहौरसे लौटते हुए रास्तेमें
माघ बदी ११ [१५ फरवरी, १९२०]
गुजरात
पंजाबम गुजरात नामक एक जिला है, उसमें गुजरात मुख्य शहर है। सन् १८४९ में जो सिख-युद्ध हुआ उसमें गुजरातकी लड़ाई प्रसिद्ध है। जिस मैदानमें लड़ाई हुई थी मैंने उस मैदानको भी देखा। इस जिलेमें भी मार्शल लॉ[१] लागू किया गया था; इसीसे मैं इसे देखने गया था। यात्राके दौरान श्रीमती सरलादेवी[२] साथ थीं।
गुजरातके पास जलालपुर जट्टाँ नामक एक छोटा-सा गाँव हैं; हमें वहाँ भी जाना था। उसे केवल बुनकरोंका गाँव कहा जा सकता है। वहाँकी स्त्रियाँ कातती हैं और मर्द बुनते हैं। वहाँकी एक छोटी-सी गलीको लोगोंने हाथसे बुने कपड़ोंसे सजा रखा था। ये कपड़े मात्र सफेद खादीके न थे, वरन् खादीको लाल रंगसे रँगकर उसमें