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परिशिष्ट

बताई है। वह इन दो आधारोंपर जनरल डायरकी आलोचना करती है : (१) कि उन्होंने बिना चेतावनी दिये गोली चलवाई, (२) जब भीड़ तितर-बीतर होने लगी तब भी गोली चलाना जारी रखा। पहले मुद्देपर उसका कहना है कि ऐसे मौकेपर ठीक तरह से पूर्व सूचना देनी चाहिये या नहीं, इसका निर्णय कर सकनेवाला एकमात्र व्यक्ति सम्बद्ध सैनिक अधिकारी ही है। फिर भी समिति इंगित करती है कि जनरल डायरने आपत्कालीन स्थिति उत्पन्न हो जानेकी बात नहीं कही है कि जिससे बिना चेतावनी दिये भीड़पर गोली चलानेका उनका फैसला उचित सिद्ध हो सकता। उन्होंने समिति के सामने कहा है कि उन्होंने आते समय फैसला कर लिया था कि यदि उनके आदेशोंका पालन नहीं किया गया तो वे तुरन्त गोली चलवा देंगे। समितिका विचार है कि बिना गोली चलाये भीड़का तितर-बितर होना स्पष्ट रूपसे असम्भव था, क्योंकि अधिकांश उपस्थित लोग एक घोषणाका सीधा उल्लंघन करके आये थे। फिर भी उसका कहना है कि पूर्वसूचनासे घोषणाकी जानकारी न होनेपर जो लोग एकत्र हुए थे और अन्य कुछ लोगोंको भी सभा छोड़ देनेका अवसर मिल जाता। भीड़ जब तितर-बितर होने लगी तब भी उन्होंने बड़ी देरतक गोली चलाना जारी रखा जो समितिकी रायमें जनरल डायरकी एक भारी भूल थी, हालांकि समितिकी राय है कि जो सूचना उस समय उनके सामने थी उसपर उन्होंने ईमानदारीसे विश्वास किया और उस समयकी सैनिक स्थितिका उन्होंने जो मूल्यांकन किया उसके कारण अपना कर्त्तव्य निभानेके लिए उन्हें यह कदम उठाना पड़ा। समिति यह भी निष्कर्ष निकालती है कि जनरल डायरका इरादा पूरे पंजाब में एक नैतिक असर पैदा करना था और वह कर्त्तव्य सम्बन्धी उनकी गलत धारणाके रूपमें इसकी निन्दा करती है। जनरल डायरने घायलोंकी मदद नहीं की; उसके बारेमें समितिका कहना है कि उनके पास बहुत ही कम सेना थी और जैसा कि उन्होंने बताया है, अस्पताल खुले थे और मदद के लिए उनसे कोई अनुरोध नहीं किया गया। अन्तमें समिति इस विचारको स्वीकार नहीं करती कि जनरल डायरके कामने पंजाब में स्थितिको बचा लिया और गदरके पैमानेपर होनेवाले विद्रोहको रोक दिया।

२०. जलियाँवाला बागकी घटनाओंपर विचार करते हुए, अल्पमतका कहना है कि सभा करनेकी मनाही करनेवाली पूर्व सूचना ठीकसे प्रकाशित नहीं हुई और वह निम्नलिखित बातोंके लिए जनरल डायरकी कटु आलोचना करती है : (१) इस कथनके लिए कि यदि वहाँ मशीनगनोंका उपयोग किया जा सकता तो वे उनका उपयोग करते। (२) बिना चेतावनी दिये गोली चलाने तथा भीड़ जब तितर-बितर होने लगी तो उसके बाद भी गोलियाँ समाप्त होने तक गोलीबार जारी रखनेके लिए। (३) केवल भीड़को तितर-बितर करनेके उद्देश्यसे नहीं बल्कि उसे सजा देने और पंजाब में एक नैतिक असर पैदा करनेके उद्देश्यसे भी गोली चलानेके लिए, (४) यह मानकर चलनेके लिए कि उनके सामनेकी भीड़में वे लोग हैं जिनपर १० तारीखको उपद्रव करनेका आरोप था। अल्पमतका विचार है, जनरल डायरका अपने कामको सही मानकर करना, कोई महत्त्व नहीं रखता और यह तर्क कि वह एक फौजी जरूरत थी बात