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परिशिष्ट

पीय निवासियोंको खतरेकी स्थितिकी चेतावनी न देना एक असंगत भूल लगती है। साथ ही वह यह भी मानती है कि यूरोपीयोंपर जितना घातक हमला वास्तवमें हुआ, पहले से उसकी कल्पना कर लेना असम्भव था।

जब डाक्टर किचलू और सत्यपालके निर्वासन के बारेमें पता लगा तब एक उत्तेजित और क्रुद्ध भीड़ने सिविल लाइनकी ओर बढ़ने का प्रयत्न किया। समितिकी राय है कि उस दिशा में आगे बढ़ने से भीड़को उप-आयुक्तका रोकना और उस उद्देश्यकी पूर्ति के लिए गोली चलानेका आदेश देना सर्वथा उचित था और अवसरकी आवश्यकताको देखते हुए वह किसी प्रकार भी ज्यादती नहीं थी। इसी प्रकार जब दूसरे मौकेपर हाल ब्रिजपर गोली चलानेका आदेश दिया गया, वहाँ भी समिति उसे उचित बताती है और मानती है कि अवसरको देखते हुए जितना आवश्यक था उससे अधिक गोलीबार नहीं किया गया।

१५. इसके बाद समिति, भीड़ द्वारा नगरमें किये गये हिंसापूर्ण उपद्रवोंका वर्णन करती है। नेशनल बैंक मैनेजर और असिस्टेंट मैनेजरको बर्बरता से इतना पीटा गया कि वे मर गये और उनके शव फर्नीचर इकट्ठा करके जला दिये गये। बैंकको लूट कर इमारत में आग लगा दी गई और वह जलकर राख हो गई। बैंकके गोदामका सामान भी लूट लिया गया। उसके बाद एलायंस बैंकपर हमला किया गया और उसके मैनेजरकी निर्दयता से हत्या कर दी गई, उसे छज्जेसे सड़कपर फेंक दिया गया; और उसका शरीर फर्नीचरपर मिट्टीका तेल डालकर जला दिया गया। इमारतको शायद इसलिए अछूता छोड़ दिया कि वह भारतीयोंकी थी। कोतवालीपर तैनात पुलिस इन उपद्रवोंको रोकने के लिए कदम उठानेमें असफल रही, इसके लिए समिति उसकी निन्दा करती है। उसका विचार था कि शायद जिम्मेदार अधिकारी उन्हें रोक सकते थे, परन्तु या तो वे अपनी जिम्मेदारी समझने में असमर्थ रहे या उसे निबाह नहीं सके। चार्टर्ड बैंकपर भी हमला हुआ परन्तु पुलिसके बीचमें आ जानेके कारण वह बच गया। टाउन हाल और डाकखाना जला दिये गये और तारघरपर भी हमला किया गया परन्तु स्टेशन गारद के जमादारने भीड़पर गोली चलाकर उसे बचा लिया। तारघरपर किये गये गोलीबारको समिति उचित मानती है। आगे चलकर समितिने मालगोदामकी लूट, गार्ड राविन्सन और सार्जेन्ट रौलेंड्सकी हत्याओं, श्री बेनेट और कुमारी शेरवुडपर किये गये घातक हमलों, श्रीमती ईस्डनके खोज निकालनेकी जिद, भारतीय ईसाई गिरजाघर (इंडियन क्रिश्चियन चर्च) सहित अन्य इमारतोंको जलाने और संचार साधनों को लगातार नष्ट करनेका प्रयत्न करके अमृतसरका सम्बन्ध अन्य स्थानोंसे काट देनेका बयान किया है। भीड़की हिंसाको सरकार-विरोधी और यूरोपीय-विरोधी बताया गया है और स्थितिकी गम्भीरताको पूरी तरह स्पष्ट किया गया है। एक दिनके अन्दर सत्तरह लाख रुपयेकी सम्पत्ति नष्ट कर दी गई।

१६. उसी दिन बादकी फौजके रूप में और सहायता पहुँच गई और शामको विभाग (डिवीज़न) के आयुक्त (कमिश्नर) ने कमांडिंग अफसरको जबानी हिदायतें दी कि स्थिति चूँकि असैनिक नियन्त्रणके बाहर हो गई है, वरिष्ठ फौजी अधिकारीके नाते,