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परिशिष्ट

थे; परन्तु स्थिति भी अत्यन्त गम्भीर थी। जनताके ऐसा विश्वास करनेसे कि दससे अधिक लोगोंके किसी भी जमावपर वगैर चेतावनी गोली चला दी जायेगी, व्यवस्था कायम करने में काफी मदद मिली, और ऐसा लगता है कि वास्तवमें इस निर्देशको अक्षरशः अमल में नहीं लाया गया। हमारे विचारमें फौजने एक संगीन परिस्थितिमें प्रशंसनीय संयमसे काम किया, और जो फौजी कार्रवाई की गई उसमें अति थी ही नहीं। बम्बई सरकारने हमें सूचना दी है कि जबतक फौज नगर में रही उसका व्यवहार प्रशंसनीय रहा। हमारी जाँचसे भी यही निष्कर्ष निकलता है।

९. वीरमगाँवका उपद्रव भी आगजनी, हत्या, सरकारी सम्पत्तिका विनाश और रेल तथा टेलीग्राफके संचार साधनोंपर हमलेके कारण अहमदाबाद-जैसा ही उग्र था। भीड़का प्रचण्ड रोष श्री माधवलालकी नृशंस हत्यासे अपनी चरम सीमापर पहुँच गया। श्री माधवलाल मजिस्ट्रेटके कार्यालयके अधिकारी थे। उनका बेदर्दीके साथ पीछा किया गया और जिस घरमे वे छिपे थे वहाँसे उन्हें घसीटकर सड़कपर लाया गया और मिट्टी का तेल डालकर सरकारी फाइलोंके ढेरके नीचे जीवित जला दिया गया। उनका शरीर जलकर राख हो गया। १२ अप्रैलकी सुबहको उपद्रवकी शुरुआत हुई और वह पूरी तरहसे तबतक नहीं दब सका जबतक कि उस दिन शामको अहमदाबादसे फौज नहीं आ गई। समितिने पाया कि उपद्रवियोंकी कुल निश्चित हताहतोंकी संख्या में छः मृतक थे और ११ घायल। भीड़ द्वारा नष्ट की गई सम्पत्ति दो लाख रुपये से ज्यादा मूल्य की थी। समिति सशस्त्र पुलिस के आचरणकी प्रशंसा करती है। उसने सही भावनासे काम किया और छः घंटेतक भीड़को सरकारी अफसरोंसे दूर रखा। उसका विचार है कि सशस्त्र पुलिसने और श्री कैल्डीकटके आधीन सशस्त्र चपरासियोंने उपद्रवियोंके विरुद्ध जिस ताकतका इस्तेमाल किया वह निश्चय ही अत्यधिक नहीं थी और सच तो यह है कि यदि प्रारम्भमें अधिक ताकत इस्तेमाल की जा सकती तो शायद एक नृशंस हत्या और सम्पत्ति के अधिक विनाशको रोका जा सकता था। समिति खेद व्यक्त करती है कि श्री माधवलालके हत्यारोंको पर्याप्त शिनाख्त के अभाव में न्यायके सामने नहीं लाया जा सका।

१०. नडियाद में मुख्य घटना यह हुई कि एक रेलगाड़ीको, जिसमें ब्रिटिश फौज अहमदाबाद भेजी जा रही थी, नष्ट करनेका प्रयत्न किया गया। रेलगाड़ी पटरीसे उतार दी गई थी; आश्चर्य है कि उसे ढालू किनारेसे लुढ़कने के पहले ही रोका जा सका। रेल और तारके संचार साधनोंपर कई हमले किये गये, परन्तु जनता और एहतियातके तौरपर वहाँ भेजी गई फौज में कोई मुठभेड़ नहीं हुई।

११. जब श्री गांधीको पंजाब और दिल्ली में प्रवेश न करने देनेका समाचार मिला तब बम्बई शहरमें उपद्रव करनेके प्रयत्न किये गये। परन्तु पुलिस और फौजने स्थितिको ठीक तरहसे सँभाल लिया और श्री गांधीके आगमनसे उपद्रव शान्त हो गया। जैसा कि समितिको बम्बई सरकारने सूचित किया है कि "उपद्रवोंमें कोई घातक रूप से आहत नहीं हुआ और न सरकारी या निजी सम्पत्तिका भारी विनाश हुआ। न तो प्रशासनका सामान्य प्रचलन ही ठप्प हुआ था और न कानून और व्यवस्थापर प्रशासकीय