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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


८. अध्याय २ में बम्बई महाप्रान्त में हुए उपद्रवोंका विवरण है। अहमदाबाद जिलेमें वे अहमदाबाद नगर और वीरमगाँवतक, खेड़ा जिलेमें नडियादतक तथा बम्बई शहर तक सीमित थे। वीरमगाम अहमदाबादसे ४० मील दूर २०,०००की आबादीवाला नगर है। और नडियाद जिसकी आबादी ३०,००० है, अहमदाबाद से २९ मील दूर है। उपद्रवका सबसे अधिक गम्भीर विस्फोट अहमदाबाद में हुआ जो श्री गांधीका घर है और जो सत्याग्रह आन्दोलनका जन्मस्थान कहा जा सकता है। १० अप्रैलको जैसे ही लोगोंने गांधीजीके विरुद्ध उठाये गये कदमके बारेमें सुना, वैसे ही उपद्रव प्रारम्भ हो गये और हालाँकि १० को दोपहरके बाद से फौजकी मदद भी प्राप्त कर ली गई थी, १४ तारीखतक उनपर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका। उपद्रवोंके विस्तृत विवेचन और उनके शमनके तरीकोंके बारेमें यह आवश्यक नहीं है कि समितिकी रिपोर्टका अनुसरण किया जाये, किन्तु यह जानना महत्वपूर्ण है कि शहरमें दो दिनतक भीड़की मनमानी चलती रही। भीड़ने जो ज्यादतियों की उनमें दो नृशंस हत्याएँ, यूरोपीयों और सरकारी अधिकारियोंपर पाशविक हमले और अदालतों तथा अन्य सरकारी इमारतोंको मटियामेट कर देना शामिल है। फौजी कमांडर द्वारा जिला न्यायाधीशकी सहमति से १२ अप्रैलको सभी लोगोंको चेतावनी देते हुए यह घोषणा जारी की गई कि यदि किसी स्थानपर दससे अधिक लोग जमा हों तो उनपर गोली चला दी जायेगी; और यदि कोई अकेला व्यक्ति शामके सात बजे और सुबहके ६ बजेके बीच किसी घरके बाहर देखा गया और यदि वह ललकारनेपर रुका नहीं, तो उसे भी गोली से उड़ा दिया जायेगा। इससे पहले पुलिस तथा फौजके शहरको बचाने व व्यवस्था कायम करनेके प्रयत्न असफल रहे थे। फौजोंने १३ अप्रैलकी दोपहरको अन्तिम बार गोली चलाई और समितिका विचार है कि वास्तव में बिना चेतावनीके कोई गोली नहीं चली, न किसी ऐसे व्यक्तिपर गोली लगी जो उपद्रव न कर रहा हो या उपद्रवियोंको न उकसा रहा हो। १४ अप्रैलको विस्फोट सहसा समाप्त हो गया और उसकी समाप्ति आंशिक रूपसे उक्त घोषणाका और आंशिक रूपसे श्री गांधीकी वापसीका परिणाम कही जाती है। यदि श्रेय देनेके लिए कहें तो गांधीजीने व्यवस्था कायम करनेमें अधिकारियोंकी मदद के लिए जनतापर अपने प्रभावका उपयोग किया। उपद्रवोंके दौरान अहमदाबादमें आठ जगह और अन्य स्थानोंपर चौदह जगह टेलीग्राफके तार काटे गये और नौ लाखकी मूल्यवान सम्पत्ति नष्ट कर दी गई। सशस्त्र पुलिस और फौजने ७४८ गोलियाँ चलाई, और उपद्रवियोंमें निश्चित हताहतोंकी संख्या २८ मृत और १२३ आहत रही। बहुमतकी रिपोर्ट में विस्फोट दबाने के लिए अपनाये गये उपायोंपर इस प्रकार टिप्पणी की गई है : "हमारी राय है कि उपद्रवोंको दबानेके लिए अधिकारियोंने जो तरीके अपनाये वे उपयुक्त थे। फौजका उपयोग अनिवार्य था और उपद्रवी ही हताहतोंके लिए जिम्मेवार हैं। शहरका नियन्त्रण दो दिनसे कम समयतक फौजके हाथमें रहा और इसका उल्लेख फौजी कानूनके कालके नामसे किया गया है। परन्तु व्यवस्था कायम करने और १२ अप्रैलको घोषणा जारी करनेके अतिरिक्त फौजी अधिकारियोंने प्रशासनिक मामलोंमें दखल नहीं दिया। तथाकथित फौजी कानूनी आदेश अत्यन्त कठोर