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परिशिष्ट

के साथ इसके निष्कर्षों की तुलना करने में कठिनाई बढ़ेगी। तदनुसार हम चाहते हैं कि एक-एक अध्यायको लेकर रिपोर्टकी जाँच की जाये, बहुमत तथा अल्पमतके निष्कर्षों पर अपने निर्णयों का उल्लेख किया जाये, विशेषकर जहाँ उनमें मतभेद रखते हैं, और अन्तमें अपने निर्णय अनुसार रिपोर्टपर क्या कार्रवाई की जाये यह बताया जाये।

७. अध्याय १में दिल्लीके उपद्रवोंका विवरण है। समिति सर्वसम्मति से इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि अधिकारियोंने स्थितिको बड़े उचित और पर्याप्त ढंगसे काबू किया, फौजी ताकत का कोई उत्तेजनात्मक या अनावश्यक प्रदर्शन नहीं हुआ; तीन अवसरोंपर गोली चलाना उचित था क्योंकि उन अवसरोंपर इस अन्तिम उपायका सहारा लेना जरूरी समझा गया। भीड़ और पुलिसके बीचकी वास्तविक मुठभेड़ोंको सत्याग्रह आन्दोलनका उप-परिणाम माना गया है। बहुमत मानता है कि पहले विस्फोटके बाद यदि श्री गांधीकी दिल्ली-यात्रा रोकी न जाती तो प्रशासकीय अधिकारियोंको गम्भीर परेशानीका सामना करना पड़ता और शायद वह यात्रा बहुत बड़े खतरेका कारण साबित होती। अल्पमत जहाँ उन्हें अलग रखे जानेके औचित्यपर संदिग्ध विचार रखता है, और यह भी कि उनकी (गांधीजीकी) उपस्थिति से शायद लाभकारी परिणाम होता, वहाँ वह जनताकी शान्तिको खतरे में डालनेवाली घटनाओंकी सम्भावनासे भी इनकार नहीं करता। स्थानीय अधिकारियों द्वारा अपनाये गये तरीकोंकी समितिने जो एकमात्र आलोचना की है वह यह कि उपायुक्त (डिप्टी कमिश्नर) ने कुछ मुख्य नागरिकोंको विशेष पुलिस सिपाहियोंके रूपमें नियुक्त करनेकी भूल की; हालाँकि वे स्वीकार करते हैं कि इन लोगोंसे कुछ काम नहीं लिया गया।

हम इन निष्कर्षोंको स्वीकार करते हैं और समितिने स्थानीय अधिकारियों द्वारा स्थितिको संभालने की जो प्रशंसा की है उसे पढ़कर हमें सन्तोष हुआ है। हम नहीं समझते कि विशेष पुलिस सिपाहियोंकी नियुक्ति के लिए उपायुक्तपर कोई दोष लगता है, क्योंकि उन्होंने तो प्रचलित प्रथाके अनुसार ही वैसा किया था। तथापि, हमने स्थानीय सरकारोंसे यह पूछनेका फैसला किया है कि विभिन्न प्रान्तोंमें इस विषयपर जो आदेश उपलब्ध हैं उनमें सुधार या पुनर्विचारकी जरूरत है या नहीं। मालूम पड़ता है, दिल्ली के अलावा अन्य उपद्रवग्रस्त केन्द्रोंमें भी प्रमुख नागरिकोंको विशेष पुलिस सिपाहीके रूप में नियुक्त किया गया था; इसलिए यह पूछ लेना और भी आवश्यक है।

भारत सरकारका विचार है कि इस अध्याय में वर्णित घटनाएँ शेष सत्याग्रह आन्दोलनका प्रथम परिणाम थीं इसलिए वे शेष रिपोर्टसे महत्वपूर्ण सम्बन्ध रखती हैं। यह व्यवस्थाकी ताकतों और सत्याग्रह या सविनय अवज्ञा आन्दोलनके अनुयायियोंकी पहली टक्कर थी। ३० मार्चको भीड़के जिस बरताव के कारण दो अवसरोंपर पुलिस और फौजके लिए गोली चलाना आवश्यक हो गया, उसे श्री गांधी या स्थानीय राजनीतिज्ञोंके विरुद्ध उठाये गये किसी कदमका परिणाम नहीं कहा जा सकता। भीड़ने बाद में जो ज्यादतियाँ कीं उनके लिए ऐसे ही कार्योंको बहाना बनाया गया है। परन्तु दिल्ली में उपद्रवोंके पहले विस्फोटके १० दिन बाद तक श्री गांधी के खिलाफ नजरबन्दीका आदेश नहीं दिया गया था।