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परिशिष्ट

यही वे घटनाएँ हैं जिनके तथ्यों, कारणों और परिणामोंको समितिने अपनी जाँचका विषय बनाया।

४. दूसरा मुद्दा जिसका भारत सरकार उल्लेख करना चाहती है वह अखिल भारतीय कांग्रेस समितिका जाँच समितिके समक्ष गवाही देनेसे अपनेको अलग रखनेका निर्णय है। समितिकी रिपोर्टको अग्रेषित करते हुए जैसा कि लॉर्ड इंटरने अपने ८ मार्चके पत्र में स्पष्ट किया है, गवाही देनेके इच्छुक सभी व्यक्तियोंको अपने नाम और पते देनेके लिए कहा गया था और साथ ही उन मुद्दोंका संक्षिप्त विवरण देनेके लिए भी कहा गया था जिनपर वे गवाही देना चाहते थे। समिति किस प्रकारकी गवाही सुनेगी इसका फैसला करना उसीपर छोड़ दिया गया था। लॉर्ड इंटरने वे परिस्थितियाँ जिनके अन्तर्गत कांग्रेस समितिने १२ नवम्बरके बाद जाँच समितिके सामने जाने और गवाही देकर आगे मदद करनेसे इनकार कर दिया और फिर बादमें ३० दिसम्बरको अपनी गवाही उपस्थित करने और पुनः जाँच प्रारम्भ करनेका सुझाव रखा तथा जिन कारणोंसे लॉर्ड इंटरने उस सुझावको अस्वीकार कर दिया उस सबका विवरण दिया है । हमारा विश्वास है कि मामलेका जो विवरण लॉर्ड इंटरने दिया है उससे सभी समझदार लोगोंको यकीन हो जायेगा कि उनका निर्णय पूरी तरह न्यायोचित था। तथापि हम जोर जिस मुद्देपर देना चाहते हैं—और जो लॉर्ड इंटरके दिमागमें भी मौजूद था—यह है कि समितिने अपने सामने प्रस्तुत की गई सामग्री और गवाहीकी ही जाँच पूर्ण रूपसे की। सरकारी गवाहोंने जिन घटनाओंमें हिस्सा लिया था उनके बारेमें जो कुछ वे जानते थे, उन्होंने पूरी तरह बताया और सारा पत्र-व्यवहार तथा अन्य तहरीरी सबूत जो उपद्रव शुरू होने, उसके दबाने, या फौजी-कानूनके अमलसे जरा भी ताल्लुक रखता था, समितिके सामने रखा। सरकारके लिए यह खेदका विषय है कि कांग्रेस-समितिने जो और गवाहियां इकट्ठी कीं उनसे इन सरकारी प्रमाणोंका समर्थन नहीं होता, और इसीलिए कांग्रेसने तबसे लेकर अबतक जो गवाही प्रकाशित की उसपर किसी निष्पक्ष न्यायालय द्वारा जाँच नहीं करवाई गई। यद्यपि इससे कुछ विशेष घटनाओंपर और प्रकाश पड़ सकता था फिर भी उन्हें इसमें सन्देह है कि इससे समिति के सामने जो सामान्य चित्र रखा गया था, उसमें कोई खास फर्क पड़ता। जलियाँवाला बाग में हुई उस गोलीबारके बारेमें जिसपर यहाँकी और भारतकी जनताका ध्यान पिछले दिसम्बर से इतना ज्यादा केन्द्रित रहा, निर्णय लेनेके लिए समितिके पास बहुत काफी सामग्री थी, इसलिए और ज्यादा गवाही तथ्योंसे सम्बद्ध उसकी जानकारीमें कुछ भी इजाफा नहीं कर सकती थी।

५. समितिने अब अपनी सिफारिशें बहुमत तथा अल्पमतकी रिपोर्टके रूपमें भेज दी हैं। बहुमतवाली रिपोर्टपर अध्यक्ष और समितिके चार सदस्य न्यायाधीश श्री रैंकिन, जनरल बैरो, और श्री राइस तथा श्री स्मिथने हस्ताक्षर किये हैं। अल्पमतवाली रिपोर्टपर सर सी॰ एच॰ सीतलवाड, पंडित जगतनारायण और साहबजादा सुलतान अहमदखाने हस्ताक्षर किये हैं। यद्यपि दो रिपोर्ट दी गईं हैं फिर भी भारत सरकारके लिए सन्तोषका विषय है कि तथ्योंके विषय में प्रायः सबका मत एक ही है; उनके