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परिशिष्ट
 

परिशिष्ट १

टर्की-संधिकी शर्तें[१]

१. टर्कीकी सरहदें जैसी पहलेसे निश्चित हैं वैसी ही रहेंगी और जहाँ जरूरत होगी वहाँ एक सीमा आयोग नियुक्त करके, पुनर्विचार किया जायेगा। इस हदबन्दीके अनुसार थ्रेसका कुस्तुन्तुनियावाला भाग तथा एशिया माइनरके तुर्क प्रधान भाग टर्कीमें शामिल होंगे।

२. कुस्तुन्तुनिया में टर्की सरकारके अधिकारों और स्वत्वोंपर असर नहीं पड़ेगा, परन्तु यदि टर्की सन्धिका पालन ईमानदारीसे न करे तो उस दशा में इस व्यवस्था में परिवर्तनका अधिकार सुरक्षित होगा।

३. मेडीटरेनियन में डार्डानेल्सके मुहाने तथा काले समुद्रमें बॉस्फोरसके मुहानेके बीच के जलपर एक जलडमरूमध्य सम्बन्धी आयोगका अधिकार होगा और इनमें से प्रत्येक मुहानेके तीन मीलके दायरेमें जलपर तथा, जितनी दूरतक जरूरी हो, तटपर भी आयोगका अधिकार होगा। आयोगका कर्त्तव्य होगा कि वह युद्ध और शान्तिके समय नौ परिवहनको स्वतन्त्रताको सुरक्षित रखे।

४. कुर्दिस्तानके लिए एक स्थानीय स्वशासनकी योजना बनाई जायेगी जिसमें असीरियों-कैल्डियनों तथा अन्य अल्पसंख्यकोंके संरक्षणकी व्यवस्था होगी। बादमें राष्ट्रसंघ तय करेगा कि कुर्दिस्तानको टर्कीसे अलग कर दिया जाये या नहीं। यदि यह प्रमाणित हो गया कि अधिकांश कुर्दी लोग अलग होना चाहते हैं तो वैसा होगा।

५. स्मर्नाके कुछ भागोंकी एक अलग इकाई बनाई गई है जिसपर ग्रीसका प्रशाशन होगा, टर्कीका प्रभुत्व तबतक जारी रहेगा जबतक कि स्मर्नाका स्वायत्त राज्य स्वयं अपना भाग्य निर्णय नहीं कर लेता।

६. कुस्तुन्तुनिया क्षेत्रको छोड़कर पूर्वी थ्रेस ग्रीसमें मिलाया जाता है और आड्रियानोपल नगरके लिए स्थानीय स्वशासनकी व्यवस्था की जा रही है।

७. टर्कीके आर्मीनियाई जिलोंके कुछ हिस्से मौजूदा आर्मीनिया गणतन्त्रमें जोड़ दिये गये हैं और कुछ जिलोंमें टर्की तथा आर्मीनियाके बीचको सीमाका पंच फैसला संयुक्त राज्य के राष्ट्रपतिको सौंपा जा रहा है। इस सम्बन्धमें और आर्मीनियाके समुद्र प्रवेशकी किसी भी शर्तपर उनका निर्णय अन्तिम होगा।

८. सीरिया, मेसोपोटामिया और फिलस्तीनको अस्थायी तौरपर स्वतन्त्र राज्य मान लिया गया है किन्तु जबतक वे अकेले खड़े होने योग्य नहीं हो जाते तबतक

  1. ये शर्तें मित्र राष्ट्रोंने टर्कोको भेजी थीं और भारत मे १४ मई, १९२० के असाधारण गज़ट में प्रकाशित की गई थीं।