पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/६०३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५७१
भाषण : सत्याग्रह आश्रम, अहमदाबादमें

हममें काफी उम्रकी मानी जाती है और उसका ब्याह कर दिया जाता है। इसलिए यदि तुम मुझे निर्भय बना दो तभी में इन सज्जनको निर्भय कर सकता हूँ और कह सकता हूँ कि यहाँ आपकी लड़कीके शीलकी रक्षा होगी और आप उसे जैसी शिक्षा देना चाहेंगे वैसी दे सकेंगे। यह प्रयोग ऐसा है कि मैंने जो नियम बताये हैं वे अक्षरशः पाले जायें, तभी लड़कियोंके माता-पिता या अभिभावक निश्चिन्त रह सकते हैं और आश्रम में रहनेवाले बड़े आदमी और शिक्षक निडर होकर यह प्रयोग कर सकते हैं। ये लोग शंकित होकर लड़कियोंके पीछे-पीछे फिरते रहें तो यह दोनोंके लिए बुरा होगा।

जिसे ऐसा लगता हो कि अब मुझसे नहीं रहा जाता, मेरी विषय-वासना इतनी ज्यादा भड़क उठी है कि मैं उसे काबू में नहीं रख सकता, उसे तुरन्त यहाँसे चले जाना चाहिए; परन्तु आश्रमको कलंक नहीं लगाना चाहिए और ऐसे पवित्र प्रयोगको खतम नहीं करना चाहिए। 'बाइबिल' में तो यहाँतक कहा है कि 'तुम्हारी आँख वशमें न रहे, तो तुम उसमें सुई घुसेड़ देना।' मुझे ऐसा नहीं लगता कि मेरी ऐसी नौबत आयेगी। किन्तु मेरी ऐसी हालत हो जाये तो में हूँ और यह साबरमती है।

किसीकी विषय-वासना जाग गई हो या न जागी हो, सबको जो कुछ मैंने कहा उसका अच्छी तरह मनन करके पालन करना चाहिए। ईश्वरने जो भेद कर दिया है, उसे हम मिटा नहीं सकते। इस भेदको कायम रखनेसे ही जिनकी विषय-वासना जाग्रत हो गई हो उनकी—और जिनकी न हुई हो उनकी तो और भी आसानी से विषय—भोगकी इच्छा काबू में रह सकती है। मैंने कई बार कहा है, फिर भी एक बार उसे यहाँ दोहरा देता हूँ कि मुझे ब्रह्मचर्य पालने में बड़ा परिश्रम करना पड़ा है। इतना परिश्रम करके ब्रह्मचर्य पालनेवाला दूसरा कोई आदमी मेरे देखने में अभीतक नहीं आया। जिसने एक बार भी विषय-भोग कर लिया है, उसके लिए वीर्यकी रक्षा करना बहुत ही कठिन हो जाता है। इसलिए तुम शुरू से ही विषय-भोगमें न पड़ना। जिन्हें ऐसा लगता हो कि हमारी इन्द्रियाँ जाग गई हैं उन्हें वहीं उनको दबा देना चाहिए। और जिनकी नहीं जागी हों उन्हें इसके लिए कोई खास परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। उन्हें सचेत रहना चाहिए कि इन्द्रियाँ जागने न पायें। जो वीर्यकी रक्षा करेंगे, वे ही देशसेवक बन सकेंगे; और लड़कियाँ भी उत्तमसे- उत्तम गृहिणी तो ब्रह्मचर्य का पालन करके ही बन सकेंगी। जो एक पतिकी ही नहीं बल्कि सारे देशकी, गरीब और दुःखी लोगोंकी सेवा करती है, उसे कौन अच्छीसे-अच्छी गृहिणी नहीं कहेगी?

दूसरी बात यह भी तुमसे कह देना चाहता हूँ कि सादी पोशाक ब्रह्मचर्यके पालनमें मददगार होती है। किन्तु यह मदद बहुत थोड़ी होती है। खादी के कपड़े पहनकर भी कोई आदमी खूब पाप करनेवाला हो सकता है, और यह भी हो सकता है कि खूब तड़क-भड़ककी पोशाक पहननेवाला मनुष्य शुद्धसे- शुद्ध ब्रह्मचारी हो। में ऐसे आदमीकी पूजा करूँगा, किन्तु खादी के कपड़े पहनकर कोई आदमी पाप करता हो और मेरे पास आये तो में उसे फटकार कर निकाल दूँगा। परन्तु हम भड़कीली पोशाक