बादमें तो कामके पुतले ही बन गये थे, उन्हें भी ज्ञान प्राप्ति के लिए ब्रह्मचर्यको पालन करने की जरूरत पड़ी थी। ज्ञान प्राप्त करने के लिए शरीर बढ़िया होना चाहिए, इसमें सिद्ध करने जैसी कोई बात ही नहीं है। इसलिए तुम्हारे शरीर तो मैं राक्षसों-जैसे ही बनाना चाहता हूँ। तुम्हारे शरीर सुधारनेका सबल प्रयत्न करते हुए भी मैं उन्हें शौकत अली जैसे नहीं देख सकूँगा, क्योंकि इसमें हमारे बाप-दादोंका दोष है। परन्तु अब भी वीर्यकी रक्षा की जाये तो भारत में फिर एक बार हनुमान पैदा हो सकते हैं। जिसका शरीर लकड़ी जैसा है, वह भला क्षमाका गुण क्या धारण कर सकता है? ऐसा आदमी तो डरके मारे दब जायेगा। मुझे अभी शौकत अली तमाचा मारें तो में उन्हें क्या माफी दूँ? और यदि में कुछ न करूँ तो में दब गया माना जाऊँगा। मैं माफी तो रसिकको[१] दे सकता हूँ। इसलिए मैं तुमसे कहूँगा कि यदि तुम्हें क्षमावान और सत्यवादी वीर बनना हो, तो तुम्हें वीर्यकी अच्छी तरह रक्षा करनी चाहिए। मैं जो अभी इक्यावन बरसका बूढ़ा होनेपर भी इतना जोर दिखा रहा हूँ, इसका कारण सिर्फ वीर्य रक्षा ही है। यदि में पहले से ही वीर्यकी रक्षा कर सका होता तो मेरी कल्पना में भी नहीं आ सकता कि आज में कहाँ उड़ता होता। मैं यहाँ बैठे हुए सब माता-पिता और अभिभावकोंसे कहता हूँ कि आप अपने लड़के-लड़कियोंको वीर्यकी रक्षा करनेकी पूरी सुविधा दें। उनसे न रहा जाये और वे आपसे आकर कहें कि अब हमसे नहीं रहा जाता, आप हमारी शादी कर दीजिये, तभी आप उनकी शादी करें। यह बात नहीं है कि मनुष्य प्राचीन समय में ही ब्रह्मचारी रह सकते थे। लॉर्ड किचनर ब्रह्मचारी था—अविवाहित था। मैं यह नहीं मानता कि वह और कहीं अपनी विषय-वासना तृप्त कर आता होगा। उसने ऐसा निश्चय कर लिया था कि फौजमें सब ब्रह्मचारी और अविवाहित लोग ही आयें—यानी गठे हुए शरीरके आदमी आयें; अविवाहित किन्तु व्यभिचारी नहीं। इसलिए में आप सब बड़ोंसे प्रार्थना करता हूँ कि इस डरके मारे कि बादमें जोड़ी नहीं मिलेगी, आप अपने लड़के-लड़कियोंकी शादी जल्दी न कर देना। वे स्वयं आपसे कहने आयें तबतक राह देखना। मुझे भरोसा है कि उस समय ईश्वर होगा और वह वरको योग्य कन्यासे और कन्याको योग्य वरसे मिला देगा।
लड़के-लड़कियोंसे एक बात और कह देना चाहता हूँ। और वह यह कि जिन लड़के-लड़कियोंका एक ही गुरु हैं, जिन्होंने एक ही गुरुके पास विद्याभ्यास किया है, वे भाई-बहन हैं। उन दोनोंको भाई-बहन होकर ही रहना चाहिए। इन दोनोंके बीच भाई-बहन के सिवा और किसी भी तरहका सम्बन्ध नहीं हो सकता। इस शाला और आश्रम में रहनेवाले तुम सब भाई-बहन हो। जिस दिन यह सम्बन्ध या नाता टूट जायेगा, उस दिन मुझे यह आश्रम या शाला समेट लेनेमें एक क्षणकी भी देर नहीं लगेगी, उस समय में लोक-लाजकी भी परवाह नहीं करूँगा। तुम मुझे विश्वास दिला दोगे कि तुम लोगों में भाई-बहनका नाता बना रहेगा, तो ही में यह प्रयोग निडर होकर चलाऊँगा; और तभी में दूसरी लड़कियोंको यहाँ लाऊँगा। अभी एक सज्जन यहाँ आना चाहते हैं । उनकी एक बारह सालकी लड़की है। इतनी बड़ी लड़की
- ↑ हरिलाल गांधीका पुत्र, गांधीजीका पौत्र।