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भाषण : सत्याग्रह आश्रम, अहमदाबादमें

में वैसा ही बरताव करें। किन्तु लड़के और लड़कियाँ एक-दूसरेके साथ इस तरहका व्यवहार नहीं कर सकते। वे एक-दूसरेके साथ बातें नहीं कर सकते, हँसी-मजाक नहीं कर सकते और एक-दूसरेके साथ खानगी पत्रव्यवहार तो हरगिज नहीं कर सकते। बच्चोंके लिए कोई बात खानगी होनी ही नहीं चाहिए। जो आदमी अच्छी तरह सत्यका पालन करता है, उसके पास खानगी रखनेके लिए क्या होगा? बड़ोंमें भी ऐसा किसी तरहका पत्रव्यवहार होना एक तरहकी कमजोरी ही मानी जायेगी। तुम्हें अपने बड़ोंकी इस कमजोरीकी नकल नहीं करनी चाहिए, बल्कि बड़ोंके कहे अनुसार तुम्हें अपनी कमजोरी दूर कर लेनी चाहिए। आम तौरपर माता-पिता अपनी कम- जोरी अपने बच्चोंको नहीं बताते और ऐसे मामलोंमें तो एक शब्द भी नहीं कहते। किन्तु यह उनकी गहरी भूल है। ऐसा करके वे अपने बच्चोंको विनाशके गहरे गड्ढे में ढकेलते हैं। यदि सब माता-पिता यह खयाल रखें कि हमारी की हुई भूलको हमारे बच्चे न दोहरायें, तो इससे बच्चोंको जितना लाभ होगा उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती‌। मैं कहता हूँ कि किसीको कोई बात गुप्त नहीं रखनी चाहिए; इसका यह मतलब नहीं कि तुम्हें दूसरोंकी खानगी बातें भी जाननेका प्रयत्न करना चाहिए। यह तुम्हारा काम नहीं। यदि हम बड़े कहीं बैठे बातें कर रहे हों और तुमसे वहाँसे चले जानेको कहें तो तुम्हें चले ही जाना चाहिए। हमारी बातें जानकर तुम हमारी कमजोरी नहीं मिटा सकते। किन्तु तुम्हारा तो कोई भी पत्र या बात ऐसी न होनी चाहिए जिसे तुम बड़ोंके सामने बेधड़क होकर न रख सको। सबसे अच्छा तो यह है कि लड़के और लड़कियोंके बीच, वर्ग में या वर्गसे बाहर, किसी भी जगह बड़ोंकी गैरहाजिरी में बातचीत हो ही नहीं। लड़कोंके निजी कमरेमें जैसे कोई दूसरा लड़का जाकर बैठता है, पढ़ता है, चर्चा करता है बातें करता है, वैसे लड़की जाकर बातचीत, चर्चा या पढ़ाई नहीं कर सकती। बड़ोंकी मौजूदगी में—जैसे प्रार्थनामें—लड़कियाँ लड़कोंको पानी पिलायें, उनसे बातें करें तो इसमें किसी भी तरहकी रुकावट नहीं हो सकती। वहाँ तो लड़कियोंका सबको पानी पिलाना फर्ज है। किन्तु वहाँ भी मर्यादा जरूर रखनी चाहिए। वहाँ यह सावधानी रखनी चाहिए कि स्पर्शदोष न होने पाये। बड़े लड़कोंके साथ बड़ी लड़कियोंके स्पर्शसे विषय-वासना जाग्रत हो उठनेकी बड़ी संभावना रहती है। इसलिए यह सावधानी रखनेकी बड़ी जरूरत है कि इस तरहका स्पर्शदोष कभी न होने पाये।

हमें यदि देशसेवा करनी ही है, तो में दिन-दिन यह अनुभव करता जा रहा हूँ कि वीर्यकी रक्षा बहुत जरूरी है। तुम्हारे इन सत्त्वहीन शरीरोंसे में क्या काम ले सकता हूँ? किसीके शरीरपर मांस तो मानो है ही नहीं। वीर्यकी रक्षा न करनेके कारण ही तुम्हारे शरीर इतने निर्बल हैं। तुम सब अपने वीर्यकी रक्षा करके अपना शरीर बनाओ। जबतक शरीर कमजोर है, तबतक ज्ञान ग्रहण नहीं किया जा सकता, तब फिर उसका उपयोग तो हो ही क्या सकता है? क्रोधी आदमी ज्ञान प्राप्त कर सकता है, झूठा आदमी भी कर सकता है; किन्तु जो ब्रह्मचर्य नहीं पालता, वह कभी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। हम पुराणोंसे जान सकते हैं कि बड़े-बड़े राक्षस जो