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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्पष्ट है। खिलाफतकी शर्तों और पंजाबके मामले दोनों ही से जाहिर होता है कि साम्राज्यकी कौंसिलों में भारतीय मत नगण्य माना जाता है। यह एक अपमानजनक स्थिति है। यदि हम चुपचाप अपमान सह लें तो सुधारोंका कुछ नहीं कर सकते। इसलिए मेरी नम्र रायमें वास्तविक प्रगतिके लिए पहली शर्त है अपने रास्तेकी इन दो कठिनाइयों को दूर करना। और जबतक इस कामका कोई दूसरा रास्ता नहीं ढूँढ़ा जाता तबतक असहयोग ही को इसके लिए आगे आना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ३०-६-१९२०
 

२५२. भाषण : सत्याग्रह आश्रम, अहमदाबादमें

[जुलाई १९२० के पूर्व][१]

हम यहाँ एक नया ही प्रयोग करना चाहते हैं। यह प्रयोग ऐसा है कि में बीच में न होऊँ, तो राष्ट्रीय शालाके शिक्षकोंकी अपने-आप यह प्रयोग करनेकी हिम्मत न हो।

हम यहाँ लड़के-लड़कियोंकी शिक्षा साथ-साथ चलाना चाहते हैं। एक बार मुझसे शिक्षकोंने पूछा कि "अब शालामें लड़कियोंकी संख्या बढ़ चली है और इसमें बड़ी लड़कियाँ भी हैं। तो क्या थोड़े दिनों बाद लड़कियोंका वर्ग अलग खोला जाये?" मैंने उस समय तो तुरन्त इनकार कर दिया और कह दिया कि लड़कियोंका वर्ग अलग करनेकी कोई जरूरत नहीं। किन्तु बाद में मुझे तुरन्त इसकी गम्भीरता समझमें आ गई और इस बातका खयाल हो आया कि इसमें कितनी जोखिम भरी है। मुझे ऐसा लगा कि इस बारे में तुम सब लड़कों, स्त्रियों और आश्रम में रहनेवाले अन्य लोगोंको कुछ नियम बता दूँ तो ठीक हो। मैं यहाँ जो कुछ कहूँ, उस सबको कानून ही मत मान लेना। मैं सिर्फ अपने विचार बताऊँगा। शिक्षक लोग बादमें चर्चा करके इसमें फेरबदल कर सकते हैं।

लड़के और लड़कियाँ एक वर्ग में बैठें, परन्तु वहाँ उन्हें उचित मर्यादामें बैठना चाहिए। लड़के एक तरफ और लड़कियाँ दूसरी तरफ बैठ जायें। बड़े लड़के और बड़ी लड़कियाँ घुल-मिलकर न बैठें, क्योंकि इसमें स्पर्शदोष होनेकी सम्भावना होती है। अभी इनमें से कुछ लड़कियाँ बड़ी हो रही हैं और कुछ थोड़े समय में हो जायेंगी। इस तरह लड़कियाँ बड़ी होती जा रही हैं और लड़के तो हमारे यहाँ बड़े हैं ही। इनका एक-दूसरेके साथ स्पर्शदोष नहीं होना चाहिए। स्पर्शदोष होनेसे ब्रह्मचर्यको नुकसान पहुँचता है। वर्गसे बाहर निकलनेके बाद लड़के आपसमें मिलें-जुलें, एक-दूसरेके साथ बातें करें, एक-दूसरे के साथ हँसी-मजाक करें, खेलें कूदें; और लड़कियाँ भी आपस-

  1. विद्यार्थियों के समक्ष दिया गया यह भाषण आश्रम से निकलनेवाली हस्तलिखित पत्रिका मचपुडीके जुलाई १९२० के अंकमें दिया गया था।