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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनकी निन्दा नहीं कर सकता। एक लेखकने कहा है कि जबतक धोखा खानेवाले हैं तबतक धोखा देनेवाले तो मिलते ही रहेंगे।

अंग्रेजोंसे द्वेष करके, उनके दोष निकालकर हम कदापि आगे नहीं बढ़ सकते। जो दोष हममें थे और जिन्हें लेकर उन्होंने हमपर अधिकार जमा लिया, हम जबतक उन दोषों को दूर नहीं करते तबतक गुलाम ही रहेंगे। तथापि अंग्रेजों से हम उनके दोषोंकी बात कहते अवश्य आये हैं और कहते रहेंगे। कांग्रेसने मुख्यतया यही कार्य किया है। दोष बतानेवाले लोग तो वृक्षके पत्तोंके समान असंख्य मिल जाते हैं। इसीसे में उनपर दोषारोपण करनेकी अपेक्षा अपने दोषोंकी जाँच करने की बातको अधिक फलदायी मानता हूँ। 'आप भला तो जग भला' यह कहावत निरर्थक नहीं है। इसमें बहुत सार है। हम निर्दोष हों तो हमें कोई गिरा नहीं सकता। वैद्यक शास्त्रका नियम है कि यदि हमारे रक्तमें विकार न हो तो बाहरकी विषैली हवाका हमपर असर नहीं पड़ सकता; इसीसे हम देखते हैं कि महामारीके समय कुछ लोगोंको उसकी छूत लगती है और कुछ लोगोंपर उसका कोई असर नहीं होता। इसी तरह यदि हममें दूसरोंसे प्रभावित होनेका अवगुण न होता तो ईस्ट इंडिया कम्पनी कुछ नहीं कर सकती थी और आजकी परिस्थिति में भी सर माइकेल ओ'डायर-जैसे अधिकारी अपने पदोंसे वंचित होकर रहते। तब हममें ऐसा क्या दोष है कि जिससे हम अपंग हो गये हैं और हम अपने देशसे बहकर जानेवाले अपार धनके इस प्रवाहको रोक नहीं पाते; हमारे बच्चोंको दूध नहीं मिलता, देशके तीन करोड़ व्यक्तियोंको एक ही बार खानेको मिलता है, दिन-दहाड़े खेड़ा जिलेमें लूटपाट हो जाती है, प्लेग, हैजा आदि रोगोंको जब और देशों से जड़से निर्मूल किया जा चुका है, हमारे देशमें यह नहीं हो पाता? क्या कारण हैं[१] कि मदान्ध सर माइकेल ओ डायर तथा उद्धत जनरल डायर हमें खटमलकी तरह मसल सकते हैं एवं शिमलेके एक पादरी महोदय हमारे सम्बन्धमें अशोभनीय बातें लिख सकते हैं? क्या कारण है कि हमारे साथ पंजाबमें असह्य अन्याय हुआ, खिलाफतके प्रश्नपर ब्रिटेनके प्रधान मन्त्रीने अपना वचन भंग किया और हम इन दोनों विषयोंके सम्बन्धमें निरुपाय जान पड़ते हैं।

इसका कारण हमारी स्वार्थदृष्टि, हममें देशके लिए आत्मत्याग करनेकी असमर्थता, हमारी कायरता, हमारा दम्भ और हमारा अज्ञान है। स्वार्थ तो सबमें कम ज्यादा होता है, लेकिन हममें वह बहुत अधिक हो गया है। परिवारकी हदतक स्वार्थ त्यागकी मात्रा थोड़ी अधिक पाई जाती है, लेकिन राष्ट्रीय मामलोंमें वह बहुत कम मात्रा में दिखाई देती है। हमारी गलियों, हमारे शहरों तथा हमारी रेलोंकी ओर देखें। अपने घरके आँगन में से में गली में कचरा फेंकने में नहीं हिचकिचाता, मेरी खिड़कीके नीचे से जानेवाले व्यक्तियोंको असुविधा होती है अथवा नहीं उसका विचार किये बिना में कचरा फेंकता और थूकता हूँ। अपना घर बनवाते समय में अपने पड़ोसीकी सुविधाका बहुत कम ध्यान रखता हूँ। शहरके नलको खुला छोड़ देता हूँ और उससे

  1. देखिए "टिप्पणियाँ", ३०-५-१९२०।