पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५९३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५६१
पुरानी पूंजी


हिन्दू दो तरह से इस अवसरका लाभ उठा सकते हैं। एक तो वे मुसलमानों जितना त्याग करें और जिस पदको मुसलमान छोड़ें उसपर न जायें। एक मुसलमान नौकरी से अलग हो जाये तो एक या तीन हिन्दू अपने पदोंसे त्यागपत्र दे दें, यह एक बात है। यदि हिन्दू ऐसा करें तो वह एक अच्छा काम होगा। मुसलमान जिस पदको त्यागें उस पदको हिन्दू ग्रहण न करें, यही दूसरी बात हुई; यह बात भी महत्त्वपूर्ण कही जा सकती है। जो हिन्दू, मुसलमान द्वारा रिक्त किये गये स्थानको भरने जाये तो समझो कि वह मुसलमान भाईके साथ शत्रुताका व्यवहार कर रहा है। इससे असहकार यद्यपि असम्भव तो नहीं पर कठिन अवश्य हो जायेगा। जो हिन्दू कुछ और नहीं कर सकता वह मुसलमानोंकी सभा में उपस्थित होकर उनके प्रति सहानुभूति प्रकट कर सकता है तथा उनके काम में बाधाएँ उपस्थित न करके कमसे कम इतना तो सिद्ध कर सकता है कि वह स्वयं [मुसलमानोंका] शत्रु नहीं है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७-६-१९२०
 

२४८. पुरानी पूँजी

जिस तरह कोई लड़का अपने पिताकी प्रतिष्ठाके बलपर बहुत दिनोंतक अपना काम नहीं चला सकता उसी तरह भारतीय जनता, भारतके स्वर्णिम अतीतके आधार पर वैभव और समृद्धि प्राप्त नहीं कर सकती। गत सप्ताह हमने स्पष्ट किया था कि वैभव और समृद्धिके बदले आज हमपर कंगाली छाई हुई है।

इस अंकमें हम उसके कारणों तथा उपायोंपर विचार करेंगे।

अकबरके समय मुगल साम्राज्यका जो तेज था उसे उसके वारिस खो बैठे, क्योंकि अकबरके गुण उसके वारिसोंमें एक-एक करके लुप्त होते गये। जहाँगीरने एक, शाहजहाँने दो, औरंगजेबने बहुतसे और उसके बादके सम्राट् लगभग सारे गुण खो बैठे। इसलिए साम्राज्यकी बागडोर मुगलोंके हाथसे निकलकर अंग्रेजोंके हाथमें चली गई। ठीक वैसा ही भारतकी वर्तमान जनताने किया है।

इस बातको हम स्वीकार नहीं करना चाहते और इसलिए कहते हैं कि दोष सिर्फ अंग्रेजोंका है, उनकी दुष्टता और धूर्तता के कारण हम गिरे हैं, वे हमारा धन ले गये, हम इसीसे कंगाल हो गये हैं; उनकी अनुमतिके बिना हम साँस भी तो नहीं ले सकते; ऐसी हालत में हमारी अवनतिमें हमारा क्या दोष है?

इस आरोप में अतिशयोक्ति होनेपर भी कुछ सचाई है। किन्तु अंग्रेज हमपर इतने हावी हो गये, इसका क्या कारण है? क्या इसमें हमारा दोष नहीं हो सकता? ईस्ट इंडिया कम्पनीके रुपयोंका लालच किसने किया? इस व्यापारी कम्पनीने अपने स्वभावानुसार व्यापार किया, क्या इसमें उसका दोष है? क्या शराब पीनेवाला शराब बेचनेवालेको दोषी कह सकता है? सूदखोरोंको में मूलधन जितना ही सूद देनेकी तैयार हो जाऊँ तो क्या इसके लिए सूदखोर ही दोषी कहे जा सकते हैं? में तो

१७–३६