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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दायी हैं जितना कि अधिकारी-वर्ग। हमारी कमसे कम तीन माँगे हैं : लॉर्ड चेम्सफोर्डको वापस [इंग्लैंड] बुलाया जाये, जुर्माने वापस किये जायें तथा रौलट अधिनियम सदाके लिए रद कर दिये जायें।

[गुजराती से]
नवजीवन, ४-७-१९२०
 

२४७. खिलाफत

इस प्रश्नके सम्बन्धमें हम एक कदम आगे बढ़े हैं और वह कदम बहुत महत्त्वपूर्ण है। हमने वाइसराय महोदयको नोटिस[१] दिया कि या तो आप हमारे पक्षका समर्थन करें नहीं तो हम शासन-प्रबन्ध चलाने में आपकी मदद नहीं कर सकते। [हम कामना करते हैं कि] वाइसराय महोदयमें इतनी सुमति आये कि वे स्वयं जनताकी ओरसे संघर्ष करें। ब्रिटिश साम्राज्य के लिए ऐसा शुभ दिन अभीतक नहीं आया है। इसलिए हमें पहली अगस्त से असहकार आन्दोलन करने की तैयारी करनी ही चाहिए। जिस असहकारके बारेमें बहुत शोर है, जिसको लेकर देशमें ढेरों कागज रँगा गया है, वह असहकार समीप आ गया है।

हमें एक माह के अन्दर असहकारकी तैयारी करनी है। इसमें मुसलमानों और हिन्दुओंकी परीक्षा होगी। लेकिन इस समय में तो हिन्दुओंके प्रति ही दो शब्द कहना चाहता हूँ। जबतक मुसलमान कुछ न करें तबतक खिलाफत के सम्बन्धमें हिन्दुओंके लिए कुछ करनेको नहीं रहता। लेकिन जब मुसलमान भाई असहकार आरम्भ करें तब हिन्दू क्या करें? इलाहाबादमें एक प्रमुख हिन्दू सज्जनने कहा कि यदि एक मुसलमान 'जस्टिस आफ पीस' के पद से त्यागपत्र देता है तो तीन हिन्दू अपना पद छोड़ने के लिए तैयार रहेंगे। यदि इतना ही हो तो समझो कि हिन्दुओंने विशेष कुछ नहीं किया। मुसलमान सात करोड़ हैं जब कि हिन्दुओंकी जनसंख्या बाईस करोड़ है, अर्थात् मुसलमानोंसे हिन्दू इस देशमें तीन गुनासे भी ज्यादा है। यदि एक मुसलमानके साथ तीन हिन्दू खड़े हों तो दोनोंका समान योगदान माना जायेगा; यह मित्रताका सूचक है। किन्तु असलमें मित्रतामें हिसाबको अवकाश ही नहीं है। फिर भी इसका यह अर्थ तो नहीं कि मित्र अपने हिस्सेसे भी कम योग दे। मित्रताका सम्बन्ध ऐसा होता है अथवा होना चाहिए कि हमें अपने हिस्से में भी अधिक योग देकर ऐसा लगे कि हमने कुछ नहीं दिया। प्रश्न यह है कि हिन्दू मुसलमानोंकी सहायता के लिए इस दृष्टिसे खड़े होंगे अथवा नहीं। उस समय समस्त संसार हिन्दुओंकी ओर टकटकी लगाकर देख रहा होगा; क्योंकि मुसलमानोंकी विजयका आधार बहुत कुछ हिन्दुओं की स्थितिपर निर्भर करेगा। यदि हिन्दू उनका साथ देंगे तो इसमें सन्देह नहीं कि उनके दुःखों का शीघ्र अन्त हो जायेगा।

  1. खिलाफत समिति द्वारा; जिसकी बैठक ९ जूनको इलाहाबादमें हुई थी।