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२४६. भाषण : इंटर समितिको रिपोर्टपर[१]

बम्बई
२६ जून, १९२०

इस प्रस्तावमें जो माँगें की गई हैं वे कांग्रेस समितिकी रिपोर्टमें उल्लिखित माँगोंसे इस बात में अधिक आगे जाती हैं कि इनमें ओ डायर और उनके साथी अधिकारियोंपर मुकदमा चलानेकी बात भी कही गई है। कांग्रेस उप-समिति इतनी दूरतक नहीं गई थी; तथापि अखिल भारतीय कांग्रेस समितिने यह माँग की है। मेरा निजी मत अभी उप-समितिकी रिपोर्टके अनुकूल ही है। फिर भी बहुमतको शिरोधार्य करके मैं इस प्रस्तावको पेश करता हूँ। मैं मानता हूँ कि हंटर रिपोर्टमें[२] स्पष्ट ही जान-बूझकर लीपा-पोती की गई है। उसमें जान-बूझकर पंजाबके अधिकारियोंके दोष पर परदा डालने का प्रयत्न किया गया है। मेरा वश चले तो मैं इसके विरुद्ध तो असहकार और सत्याग्रहका ही प्रस्ताव पेश करूँ, क्योंकि हम इसी रास्ते से पार उतर सकते हैं। मैं यहाँ भाषण देने नहीं आया हूँ, बल्कि इस सम्बन्धमें मेरी जो तीव्रतम भावनाएँ हैं, उन्हें व्यक्त करने आया हूँ। मैं आपके पास सिर्फ प्रस्ताव पास करानेके उद्देश्य से यहाँ नहीं आया हूँ, वरन् उससे भी अधिक, कार्य करनेके लिए कहनेको आया हूँ। यदि आप लॉर्ड चेम्सफोर्डको इंग्लैंड वापस भेज सकें तो यह काम ओडायर अथवा डायरको फाँसी के तख्तेपर लटकानेकी अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण माना जायेगा। जिस मनुष्यने लोकभावनाका सबसे अधिक अनादर किया है उसे सबसे पहले निकाला जाना चाहिए। मार्शल लॉके नायक बॉसवर्थ स्मिथ अभी अपने पदपर ही प्रतिष्ठित हैं। जनताका लक्ष्य डायर, ओ'डायर, लॉर्ड चेम्सफोर्ड आदिको उनके पदोंसे उतारना होना चाहिए। इस प्रस्तावमें हम लोगोंपर किए गये जुर्माने तथा नुकसान आदिका हर्जाना भी माँगते हैं। आप सम्भवतः इन जुर्मानोंकी भयंकरतासे अपरिचित हों! जबतक लोगोंपर किये गये ये भारी जुर्माने उन्हें वापस नहीं मिलते तबतक इन अधिकारियोंको सजा देनेकी बात कहना व्यर्थ है। जबतक रौलट अधिनियम विधि-पुस्तिका में है तबतक सत्याग्रह तो होगा ही और अगर जनता इस अस्त्रका प्रयोग करना सीख जाये तो सब दुःख ही टल जायें। मेरा तो सत्याग्रहमें अटूट विश्वास है। पंजाबपर किये गये अन्यायका निराकरण अभी नहीं हो पाया है। उसके लिए हम उतने ही उत्तर-

  1. यह सभा इंटर समितिकी रिपोर्टके प्रति विरोध प्रकट करनेके लिए बम्बई होमरूल लीग तथा नेशनल यूनियन के तत्वावधान में की गई थी। इसकी अध्यक्षता एम॰ ए॰ जिन्नाने की थी। मुख्य प्रस्ताव गांधीजीने पेश किया था जिसमें इंटर समितिके बहुमत द्वारा दी गई रिपोर्ट तथा उसपर भारत-मन्त्री और भारत सरकार द्वारा दी गई स्वीकृतिके प्रति विरोध प्रकट किया गया था एवं पंजाबके अन्यायपर कांग्रेस समितिने जो रिपोर्ट दो थी उसकी सिफारिशों को लागू करनेका अनुरोध किया गया था।
  2. २५ मई, १९२० को प्रकाशित हुई थी।