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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसे रोकना। और मैं कहूँगा, यह काम अपेक्षाकृत अधिक आसान भी है और ज्यादा जरूरी भी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-६-१९२०
 

२४३. भाषण : बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बारेमें

२३ जून, १९२०

कल माधव बाग, बम्बई में एक सार्वजनिक सभा की गई, उसमें माननीय पंडित मदनमोहन मालवीयने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयपर एक भाषण दिया। ग्वालियर-नरेश महाराजा सिन्धिया अध्यक्ष थे। सभामें बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे, जिनमें महाराजा बीकानेर, श्री मो॰ क॰ गांधी, मौलाना शौकतअली . . . भी थे।
श्री गांधीने अपने भाषण में कहा कि हमारे मित्र पंडित मालवीयने विश्वविद्यालयके लिए जितने उत्साह और परिश्रमसे काम किया है उतना और किसीने नहीं।[१] जब-जब इस विषयपर बात करनेका मुझे अवसर मिला है तब-तब उन्होंने मुझे बताया कि विश्वविद्यालयके कामको और आगे बढ़ाना वे अपने जीवनका मुख्य कार्य मानते हैं। उन्होंने मुझसे यह भी कहा है कि यदि बन सका तो वे राजनीतिका क्षेत्र बिलकुल ही छोड़ देंगे और अपने आपको विश्वविद्यालयके काममें पूरी तौरसे लगा देंगे। बम्बई हमेशा इस बात के लिए प्रसिद्ध रहा है कि वह एक उचित उद्देश्य की सहायताके लिए तुरन्त तत्परता से आगे आता है और इस बातमें मुझे जरा भी सन्देह नहीं है कि बम्बई अपनी उसी परम्परागत उदारतासे काम लेगा और विश्वविद्यालयकी सहायता करेगा। केवल पंडित मालवीय ही नहीं, दो महाराजा भी आज आपके बीच नम्र याचकोंके रूपमें पधारे हुए हैं। अतएव आपका कर्त्तव्य है कि विश्वविद्यालय-कोषके लिए जितना भी दान दे सकें दें तथा यह दान तत्परताके साथ और इसी स्थलपर देना उचित होगा। श्री गांधीने महाराजा सिन्धियाको अध्यक्ष-पद ग्रहण करनेके लिए हार्दिक धन्यवाद देनेके उपरान्त अपना भाषण समाप्त किया।
[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २४-६-१९२०
  1. मालवीयजीने १९१६ में विश्वविद्यालय स्थापना की थी; उसकी योजनापर कई वर्षोंतक काम किया और उसका खर्च चलानेके लिए एक करोड़ रुपयेका एक कोष संग्रह किया।