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पंजाबियोंका कर्त्तव्य

इसका पर्याप्त अनुभव हो गया है। लगभग सारे अंग्रेजी अखबार मानवताके प्रति ऐसा घोर अपराध करनेवाले इन लोगोंके कारनामोंपर परदा डालने की साजिशमें शामिल हो गये हैं। इनपर सरकारी अथवा गैर-सरकारी तौरपर मुकदमा चलानेके लिए चीख-पुकार मचानेका मतलब है इन्हें 'हीरो' का दर्जा दे देना[१] और मैं ऐसे किसी प्रयास में शामिल नहीं होऊँगा। अगर मैं भारतको सिर्फ इनकी पूरी बरखास्तगीकी माँग करनेके लिए राजी कर सकूँ तो इसे काफी समझँगा। लेकिन सर माइकेल ओडायर और जनरल डायरकी बरखास्तगीसे ज्यादा जरूरी यह है कि कर्नल ओ'ब्रायन, श्री बॉसवर्थ स्मिथ, राय [साहब] श्रीराम तथा कांग्रेस उप-समितिकी रिपोर्टमें बताये गये[२] अन्य व्यक्तियोंपर अगर मुकदमा न भी चलाया जाये तो उन्हें कमसे कम बिलकुल बरखास्त तो कर ही दिया जाये। जनरल डायरको तो मैं बुरा मानता ही हूँ, लेकिन श्री स्मिथको तो कहीं ज्यादा बुरा मानता हूँ और उनके अपराधोंको जलियाँवाला बागके कत्लेआमसे ज्यादा जघन्य समझता हूँ। जनरल डायर ईमानदारीके साथ ऐसा मानते थे कि एक सिपाहीके नाते लोगोंपर गोलियाँ चलाकर उन्हें भयभीत करना उनका कर्त्तव्य था। लेकिन श्री स्मिथने मनमाने तौरपर नृशंसता बरती, कमीनापन और नीचता दिखाई। अगर उनके खिलाफ कही गई सारी बातें सत्य हैं तो मानना पड़ेगा कि उनमें इन्सानियतका लेश भी नहीं है। जनरल डायरके विपरीत, उनमें अपने कियेको कबूल करनेकी हिम्मत नहीं है और जब उनसे कोई बात पूछी जाती है तो वे बगलें झाँकने लगते हैं। लेकिन आज भी यह अधिकारी लोगोंको—ऐसे लोगोंको जिन्होंने कभी उसका कुछ नहीं बिगाड़ा—तबाह करनेको स्वतन्त्र है और जिस शासनका वह फिलहाल प्रतिनिधि बना हुआ है उसे कलंकित करनेकी उसे पूरी छूट मिली हुई है।

और इस हालत में पंजाब क्या कर रहा है? क्या पंजाबियोंका यह स्पष्ट कर्त्तव्य नहीं है कि जबतक वे श्री स्मिथ और उन जैसे अन्य लोगोंको बरखास्त न करवा लें तबतक चैनसे न बैठें? और अगर पंजाबके नेता[३] अपनी मुक्तिका उपयोग सर्वश्री बॉसवर्थ स्मिथ और उनके गुर्गोंके कारनामोंसे पंजाब प्रशासनको छुटकारा दिलानके लिए नहीं करते तो वे व्यर्थ ही जेलोंसे छूटकर आये। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि वे संकल्पके साथ एक आन्दोलन छेड़-भर दें तो सारा भारत उनके साथ होगा। में उन्हें यह सलाह दूँगा कि अगर जनरल डायरको कठघरे में खड़ा करवाना है तो उसका सबसे अच्छा तरीका है, जिन अधिकारियोंके खिलाफ इतने सारे प्रमाण एकत्र करनेमें उन्होंने मदद दी वे अधिकारी आज भी जो शरारत और शैतानी किये जा रहे हैं,

  1. इंग्लैंडके कुछ हल्कोंमें डायरका बड़ा सौहार्दपूर्ण स्वागत किया गया; उनकी सहायता के लिए एक सार्वजनिक कोष भी आरम्भ किया गया।
  2. देखिए "पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट", २५-३-१९२०।
  3. ये नेता सैनिक कानूनके अन्तर्गत गिरफ्तार किये गये थे और बादमें २३ दिसम्बर, १९१९ को राज घोषणा में जो आम माफी दी गई थी उसके अन्तर्गत छोड़ दिये गये थे।