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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
अगर अभियुक्त साहस करके अपने बचावमें कुछ कहना भी चाहता है तो उसे फटकारकर चुप कर दिया जाता है। . . . छावनीका कोई भी सरकारी कर्मचारी एक पुर्जेपर किसी भी नागरिकका नाम लिखकर दूसरे दिन उसे अदालत में हाजिर होनेको मजबूर कर सकता है। उसका इतना भर लिख देना ही सम्मनके बराबर है। . . . जिससे इस प्रकार अदालतमें हाजिर होनेको कहा जाता है वह अगर हाजिर नहीं होता तो उसकी गिरफ्तारी के लिए फौजदारी वारंट जारी कर दिया जाता है।

इस पत्र में इसी तरह की और भी बहुत सी बातें कही गई हैं जो उद्धृत करने लायक हैं। लेकिन जितना मैंने दे दिया है, उससे लेखकका आशय स्पष्ट हो जाता है। अब सैनिक कानून के दौरान हम जरा इन अधिकारी महोदय के कारनामोंको देखेंगे। ये अधिकारी वही सज्जन हैं जिन्होंने अपने इजलासमें लोगोंको एक-एक करके नहीं, बल्कि समूहों में हाजिर करवाकर मुकदमेका नाटक करने के बाद उन्हें सजा दी। गवाहोंका कहना है कि वे लोगों को इकट्ठा करके उनसे झूठी शहादतें देने को कहते थे, औरतोंके पर्दे-बुर्के उठवा देते थे, उन्हें "मक्खी, कुतिया और गधी" कहकर पुकारते थे और उनपर थूक देते थे। यही थे जिन्होंने शेखूपुराके निरीह वकीलोंपर अवर्णनीय जुल्म किये थे। श्री एण्ड्र्यूज इस अधिकारीके विरुद्ध की गई शिकायतोंकी व्यक्तिशः जाँच करके इस निष्कर्षपर पहुँचे कि श्री स्मिथसे अधिक बुरा बरताव दूसरे किसी अधिकारीने नहीं किया है। इन्होंने शेखूपुराके लोगोंको इकट्ठा करके तरह-तरहसे उनका अपमान किया, उन्हें "सूअर लोग" और "गन्दी मक्खी" कहा। इंटर समितिके सामने उन्होंने जो गवाही दी उससे प्रकट होता है कि किस तरह उन्होंने सत्यका गला घोटा है। ये वही अधिकारी हैं जिनकी, अगर उक्त पत्र लेखककी बातें सही हों तो, तरक्की कर दी गई है। लेकिन सवाल यह है कि वे अभीतक सरकारी सेवामें बने हुए ही क्यों हैं और बेगुनाह औरतों और मर्दोंको मारने-पीटने उन्हें अपमानित करनेके अभियोगमें अबतक उनपर मुकदमा क्यों नहीं चलाया गया है।

देखता हूँ, लोगों में यह इच्छा बहुत प्रबल है कि जनरल डायर और सर माइकेल ओ'डायपर महाभियोग लगाया जाये। यह व्यवहार्य है या नहीं, इसपर में यहाँ विचार नहीं करूँगा। लेकिन मुझे यह देखकर बड़ा दुःख हुआ कि जनरल डायरपर महाभियोग लगानेकी इस चीख-पुकारमें श्री शास्त्री[१] भी शामिल हैं। अगर अंग्रेज लोग स्वेच्छासे ऐसा करें तो मैं इसका स्वागत करूँगा। क्योंकि यह इस बातकी निशानी होगी कि उन्होंने जलियाँवाला बागकी नृशंसताको भर्त्सनीय माना है, लेकिन निश्चय ही, में इन दोनोंको दण्डित करवानेके निरर्थक प्रयत्नपर फूटी कौड़ी भी खर्च करना नहीं चाहूँगा। और इस सम्बन्धमें अंग्रेजोंका क्या खयाल है, जनताको तो

  1. वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्री। ३ अप्रैल, १९२० को आयोजित बम्बई प्रान्तीय कान्फ्रेंसमें सर ओ'डायर तथा अन्य लोगोंपर महाभियोग लगाने और किसी न्यायाधिकरण द्वारा उनकी जाँच करके उन्हें दण्डित करनेकी माँग की गई थी।