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२४२. पंजाबियों का कर्त्तव्य

इलाहाबादका 'लीडर' श्री बॉसवर्थ स्मिथसे सम्बन्धित पत्र छापनेके लिए बधाईका पात्र है। ये श्री स्मिथ उन्हीं अधिकारियोंमें से एक हैं जिनके खिलाफ सैनिक कानूनके दौरान लोगों के साथ दुराग्रहपूर्वक लगातार दुर्व्यवहार करनेकी सबसे ज्यादा शिकायत की गई है।[१] इस पत्र से पता चलता है कि श्री स्मिथको बरखास्त करनेके बजाय तरक्की दे दी गई है। मालूम होता है, सैनिक कानून घोषित किये जाने से कुछ दिनों पहले उनकी तनज्जुली कर दी गई थी। 'लीडर' के नाम उक्त पत्रका लेखक कहता है :

अब उन्हें, जिस द्वितीय श्रेणीके डिप्टी कमिश्नर के पदसे तनज्जुल कर दिया गया था, फिर उसी पदपर प्रतिष्ठित कर दिया गया है। साथही उन्हें प्रक्रिया संहिताके खण्ड ३० की रूसे प्राप्त होनेवाली सारी सत्ता भी दे दी गई है। उनके आनेके बादसे अम्बाला छावनीके बेचारे भारतीय नागरिक त्रास और अत्याचारपूर्ण शासनमें रह रहे हैं।
पत्रलेखक आगे कहता है :
मैंने उपर्युक्त दोनों विशेषणोंका प्रयोग जान-बूझकर उसी अर्थ में किया है जो अर्थ इनसे निकलता है।

मैं सारी स्थितिको बिलकुल खोलकर रख देनेवाले इस पत्रके कुछ अंश उद्धृत कर रहा हूँ, जिनसे त्रास और अत्याचारका मतलब स्पष्ट हो जायेगा।

निजी शिकायतोंके सम्बन्धमें वे शिकायत करनेवाले व्यक्तिका बयान कभी नहीं लेते। जब अदालत उठ जाती है तब पेशकार ऐसा बयान ले लेता और फिर दूसरे दिन मजिस्ट्रेटसे हस्ताक्षर करवा लेता है। (ऐसी शिकायतोंके बारेमें) जो रिपोर्ट ली जाती है, वह चाहे शिकायत करनेवाले के अनुकूल हो या प्रतिकूल, मजिस्ट्रेट उसे कभी नहीं पढ़ता और बिना किसी उचित जाँच-प्रक्रिया के शिकायत रद कर दी जाती है। यह तो है निजी शिकायतोंका हाल। अब पुलिस चालानोंका किस्सा सुनिए। ऐसे मामलोंमें अभियुक्तोंके वकीलोंको पुलिसकी हिरासत में बन्द विचाराधीन व्यक्तियोंसे मिलने नहीं दिया जाता। उन्हें वादी पक्षके गवाहोंसे जिरह नहीं करने दी जाती। . . .उनकी जाँच उनसे ऐसे प्रश्न करके की जाती है, जिनका उत्तर वे प्रश्नकर्त्ता मनके मुताबिक दें। . . . इस प्रकार अभियोगका सारा किस्सा पुलिसके गवाहोंकी जबानी कहलवाया जाता है। बचाव पक्षके गवाहोंको यद्यपि अदालतमें बुलाया जाता है, किन्तु बचाव पक्षके वकीलको उनसे पूछताछ नहीं करने दी जाती। . . .
  1. देखिए "पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट", २५-३-१९२०।