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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बनी होनी चाहिए। उसमें मेरा शामिल रहना भी एक बुराई ही है, लेकिन मेरी योग्यताओंको देखते मेरा उसमें रहना एक ऐसी बुराई है जिसे टाला नहीं जा सकता। मैंने असहयोगका विशेष ज्ञान प्राप्त किया है। मैंने सफलतापूर्वक इसका प्रयोग करके देखा है। इस असहयोग विषयक प्रस्तावकी[१] कल्पना दिल्ली सम्मेलनमें[२] मैंने ही की थी। अतएव में इस समिति में विशेषज्ञकी हैसियतसे शामिल हूँ, हिन्दूकी हैसियतसे नहीं। अतः मेरा काम भी सिर्फ सलाहकारका काम है। हाँ, यह बात निस्सन्देह समितिके लिए लाभदायक है कि मैं एक ऐसा कट्टर हिन्दू हूँ जो असहयोगमें अपने मुसलमान भाइयोंका पूरी हदतक साथ देना प्रत्येक हिन्दूका कर्त्तव्य मानता है। लेकिन यह लाभ तो, मैं समितिमें होता या न होता, उसे यों भी प्राप्त ही रहता।

अब खिलाफत से हिन्दुओंके सम्बन्धपर विचार करते समय किंचित् पुनरावृत्तिका खतरा उठाकर भी मैं अपनी स्थिति स्पष्ट कर देना चाहूँगा। चूंकि मैं मुसलमानोंकी माँगोंको (धार्मिक दृष्टिकी बात अलग रखें तो भी) वास्तविक दृष्टिसे उचित मानता हूँ इसलिए मैं उसके साथ असहयोग में पूरी हदतक चलने को तैयार हूँ। और में इस चीजको भारत के साथ ब्रिटेनके सम्बन्धोंके प्रति मेरी जो निष्ठा है, उससे भी सर्वथा संगत मानता हूँ। लेकिन मैं किसी हिंसात्मक लड़ाईमें मुसलमानोंके साथ नहीं जाऊँगा। उदाहरणके लिए, अगर शान्ति-संधिकी शर्तों को मुसलमानोंके लिए अधिक अनुकूल बनवानेके उद्देश्य से अफगानिस्तानकी ओरसे या किसी और रास्ते भारतपर किसी आक्रमणको बढ़ावा देनेका प्रयत्न किया जाये तो मैं उसमें सहायता नहीं दे सकता।[३] मेरे विचारसे उपर्युक्त उद्देश्य से किये गये किसी आक्रमणका विरोध करना भी उसी तरह प्रत्येक हिन्दूका कर्त्तव्य है जिस तरह यह कि वह असहयोग या कष्ट सहनके किसी और तरीके से लाख मुसीबतें झेलकर भी अपने मुसलमान भाइयोंकी उचित और न्यायसंगत माँगोंको सरकारसे स्वीकार करवाने के प्रयास में तबतक हाथ बँटाता रहे, जबतक कि उससे भारतकी स्वतंत्रताको कोई खतरा न हो। किसीके साथ हिंसा न की जाये। मैं पूरे मनसे असहयोग आन्दोलन में कूद पड़ा हूँ—और किसी कारणसे नहीं तो कमसे कम इसी कारण से कि मैं ऐसे किसी सशस्त्र संघर्षको रोकना चाहता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-६-१९२०
  1. देखिए परिशिष्ट ३।
  2. जो जनवरी १९२० के तीसरे सप्ताह में हुआ था। यह १९ जनवरीको दिल्लीमें वाइसरायसे मुलाकात करनेवाले भारतीय खिलाफत शिष्टमंडलके सदस्योंका सम्मेलन था।
  3. १ और २ जून, १९२० को इलाहाबाद में आयोजित हिन्दुओं और मुसलमानोंके संयुक्त सम्मेलन में हिन्दू प्रतिनिधियोंने यह आशंका व्यक्त की थी कि अगर भारतीय मुसलमान अफगानिस्तानको भारतपर आकमणके लिए बढ़ावा देंगे तो उलझन पैदा हो सकती है। मुसलमान वक्ताओंने आश्वासन दिया कि अगर विशुद्ध रूपले भारतको जीतनेके लिए इसपर कोई आक्रमण किया गया तो वे उसका प्रतिरोध करेंगे, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इस्लामको प्रतिष्ठा और न्यायके हकमें किये गये किसी भी आक्रमणके साथ उनकी पूरी सहानुभूति होगी, भले ही वे उसमें वास्तविक सहायता न दें।