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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लगा सकें जिससे लोग विभिन्न हिदायतों, अनुशासन तथा अहिंसाका पालन करें। सो दरअसल यह कार्यकर्त्ताओंकी समिति है। यह आशा नहीं की जा सकती कि भारतके सभी मुसलमान असहयोगके सम्बन्ध में एक-सी तत्परता दिखायेंगे। कुछको इसकी प्रभावकारितामें सन्देह है, तो कुछ इसे बहुत हलका इलाज मानते हैं। इसी तरह कुछको भय है कि यह इलाज भारतके लिए बहुत सख्त है; उनका कहना है कि भारतमें अभी बलिदानकी भावना इतनी जाग्रत नहीं हुई है जिससे यहाँ असहयोगकी सफलता निश्चित मानी जा सके। इस प्रकारकी शंकाएँ उठानेवाले लोग, हो सकता है, इस समितिमें शामिल कई मुसलमानों से अन्यथा अधिक प्रभावशाली हों, लेकिन समिति न तो उनका प्रतिनिधित्व करती है और न उन्हें इसमें शामिल ही किया गया है। इसमें केवल ऐसे लोग ही शामिल किये गये हैं जिनका असहयोग में अधिक से अधिक विश्वास है और जो असहयोग में अपनी पूरी निष्ठा घोषित करनेके बावजूद इसकी गति इतनी तीव्र करनेकी कोशिश नहीं करेंगे कि औरोंसे इसका सम्बन्ध ही न रह पाये, बल्कि इसके विपरीत, जहाँतक सम्भव हो समस्त राष्ट्रको असहयोग के कार्यक्रम में साथ लेकर चलनेकी कोशिश करेंगे। दूसरी ओर ऐसा करते हुए वे स्वयं अधिक से अधिक साहसपूर्ण कदम उठाने में नहीं हिचकेंगे और ऐसे लोगोंको भी साथ लेते जायेंगे जिनमें ऐसी निष्ठा और साहस हो। अतएव इस समितिको, जिसकी आज कोई ख्याति नहीं है, अपने कामके सुपरिणामोंके बलपर ख्याति प्राप्त करनी है, नाम कमाना है। अगर यह समिति काम करके नहीं दिखाती, या अपने कामके बावजूद कुछ सुपरिणाम नहीं दिखाती तो इसका अस्तित्व ही नहीं रह जायेगा। बाहरवालोंकी दृष्टिमें यह किसी तरह प्रतिनिधि संस्था नहीं है। उनके विचारसे शौकत अली स्वभावसे सरल तो हैं, लेकिन बिलकुल धर्मान्ध हैं और उनका किसीपर कोई प्रभाव नहीं है, हसरत मोहानी बेकारके आदमी हैं और उन्हें तो हमेशा स्वदेशीकी ही धुन लगी रहती है; डा॰ किचलू अभी कलके छोकरे हैं और उन्हें अमृतसर से बाहर की दुनियाका कोई अनुभव नहीं है। दूसरोंके बारेमें भी ऐसी ही बहुत-सी बातें कही जा सकती हैं। मैं उनके विचारमें औरोंसे श्रेष्ठ तो हूँ, लेकिन आखिरकार एक सनकी आदमी हूँ और इस मामलेसे कोई सीधा सम्बन्ध न होते हुए भी इसमें जबरदस्ती टांग अड़ानेको आ गया हूँ। उनके खयालसे इसके सदस्योंके हस्ताक्षरसे जो भी आवेदन जायेगा उसका जहाँतक इन हस्ताक्षर-कर्त्ताओंके निजी प्रभावका सम्बन्ध है, कोई असर नहीं होगा। इसका यह मतलब नहीं कि यह कभी आवेदन देगा ही नहीं। जब फौरन किसी कार्रवाईकी जरूरत होगी या जब अन्य लोग नीतिवश या किसी दूसरे कारणसे आवेदनोंपर हस्ताक्षर करनेको तैयार नहीं होंगे तो यह अपने सदस्योंके हस्ताक्षरोंसे आवेदन अवश्य भेजेगी। हाँ, यह तो है ही कि महत्त्वपूर्ण आवेदनोंपर लोगोंसे हस्ताक्षर करानेके प्रयत्नके सिलसिले में लोकमतका अन्दाजा भी हो जायेगा और वह इस बातकी भी कसौटी होगा कि देशके गण्यमान्य लोग बलिदानके लिए कहाँतक तैयार हैं। लेकिन आज जनताके लिए और आन्तरिक कार्योंके लिए यह समिति पूर्ण रूपसे प्रतिनिधि संस्था है। मुस्लिम लोकमतका शौकत अली और हसरत मोहानीसे बढ़कर कोई दूसरा प्रतिनिधि मिल पाना मुश्किल ही