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असहयोग समिति


लेकिन असहयोगसे बचनेका अब भी एक उपाय है। मुसलमानोंने आपसे प्रार्थना की है कि जिस प्रकार आपके प्रसिद्ध पूर्ववर्ती [वाइसराय लॉर्ड हार्डिंग] ने दक्षिण अफ्रिकी समस्याके सम्बन्धमें किया था ठीक उसी तरह आप स्वयं इस आन्दोलनका नेतृत्व करें। लेकिन अगर आप ऐसा नहीं कर सके और असहयोग अनिवार्य हो जाये तो मुझे आशा है, आप मानेंगे कि जिन लोगोंने इस मामलेमें मेरी सलाह स्वीकार की है, उन्होंने और मैंने भी किसी छोटी चीजके लिए नहीं, बल्कि अपनी कठोर कर्त्तव्य-भावनासे प्रेरित होकर ही यह आन्दोलन छेड़ा है।

आपका,
मो॰ क॰ गांधी

लैबर्नम रोड
गामदेवी
बम्बई
[अंग्रेजी से]

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया : होम, पोलिटिकल (ए), नवम्बर १९२०; सं॰ १९-३१

 

२४१. असहयोग समिति

३ जूनको इलाहाबाद में खिलाफत समितिने जिस असहयोग समितिकी नियुक्ति की, उसके विषय में तरह-तरह के भ्रम और गलत अनुमान फैले दिखते हैं।[१] उस सभा में उपस्थित एक मित्र लिखते हैं कि यह समिति असहयोगको पूरी तरहसे कार्य रूप देनेके उद्देश्य से गठित की गई है और इसे असहयोग से सम्बन्धित सारे मामलोंमें जो चाहे करनेका अधिकार दे दिया गया है—मानो यह अधिकारियोंके पास निवेदन आदि भेजनेके मामले में भी भारतकी सारी मुसलमान आबादीका प्रतिनिधित्व करती हो। समितिका अधिकार क्षेत्र इतना व्यापक नहीं है, यही दिखाना इस लेखका उद्देश्य है।

इस समितिको स्थापनाका सुझाव देते हुए जैसा मैंने बताया था, इसका उद्देश्य असहयोग के सम्बन्ध में देशकी इच्छा जानना और उसे कार्यान्वित करना था। यद्यपि यह एक प्रतिनिधि संस्था है और इसे जो उचित लगे वह करनेका पूरा अधिकार है, फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यह भारत के सभी अच्छे और प्रभावशाली मुसलमानोंकी प्रतिनिधि संस्था है, और न इसे ऐसा रूप देनेका कोई इरादा ही रहा है। उदाहरण के लिए, यह नवाब जमींदार आदि वर्गके मुसलमानोंका प्रतिनिधित्व नहीं करती। इसे जान-बूझकर उन्हींतक सीमित रखा गया है जो अपना सारा समय और ध्यान असहयोग आन्दोलनका संगठन करनेमें और ऐसा करते हुए यह सुनिश्चित करनेमें

  1. देखिए "भाषण : खिलाफत समितिकी बैठक में", ३-६-१९२०।