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२५. पत्र: नरहरि परीखको

लाहौर

बृहस्पतिवार [१२ फरवरी, १९२०][१]

भाईश्री नरहरि,

तुम्हारे पत्र नियमपूर्वक आते रहते हैं। इनसे मुझे बहुत शान्ति मिलती है। मेरे पत्रोंको, तुम्हारी इच्छा हो, तो ही, महादेवको पढ़वाना। फाड़कर फेंकना चाहो तो फाड़ डालना।

मैं वहाँ २३ तारीखको आने की उम्मीद करता हूँ। २२ तारीखको पहुँच सकता हूँ। डाक्टरका[२] पत्र भेजकर ठीक ही किया।

दीपक[३] रोटी और गुड़के अलावा दाल-सब्जी आदि भी खाता है या नहीं? वह अपने मामाके यहाँ फिर कभी गया था या नहीं? उसे प्रत्येक रविवारको जानेका न्यौता मिला हुआ है। इस रविवारको तुम्ही पैदल साथ ले जाओ तो ठीक होगा।

एस्थरकी दशा शोचनीय है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ११८८७) की फोटो-नकलसे।

२६. पत्र: नरहरि परीखको

[१३ फरवरी, १९२०][४]

भाईश्री नरहरि,

तुम्हारे पत्रोंमें दो बातोंका उत्तर देना बाकी रह जाता है। दीपकको लाने से तुम्हारा काम बढ़ गया है, यह बात सही है। यह भी सच है कि इससे तुम्हारे काममें विघ्न पड़ेगा। तथापि गुजराती भाषा-भाषीके अतिरिक्त किसी औरको न लेने के नियमका पालन करने में मुझे दिक्कत दिखाई देती है। दीपक जिन शर्तोंको मानकर

  1. पंजाबको अपनी तीन सप्ताहको यात्राके पश्चात् गांधीजी २२ फरवरी, १९२० को अहमदावाद पहुँचे थे। लाहौर में बिताये अन्तिम बृहस्पतिवारको यही तारीख पड़ती थी।
  2. सम्भवतः डाक्टर जीवराज मेहता।
  3. सरलादेवी चौधरानीका लड़का। जनवरी १९२० को वह आश्रमके स्कूलमें दाखिल हुआ था।
  4. जैसा कि पत्रमें बताया गया है, गांधीजीने यह पत्र सरगोधासे लिखा था, जहाँ वे अपनी पंजाब यात्राके दौरान इस तारीखको गये थे।