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२४०. पत्र : वाइसरायको[१]

२२ जून, १९२०

सेवा में
परमश्रेष्ठ परममाननीय लॉर्ड चेम्सफोर्ड
पी॰ सी॰, जी॰ एम॰ एस॰ आई॰, जी॰ सी॰ एम॰ जी॰ जी॰ एम॰ आई॰ एफ॰
भारत के वाइसराय और गवर्नर जनरल
शिमला
परमश्रेष्ठ,

चूँकि मुझे आपका थोड़ा-बहुत विश्वास प्राप्त रहा है और में अपने-आपको ब्रिटिश साम्राज्यका एक सच्चा शुभचिन्तक मानता हूँ; इसलिए आपको और आपके जरिये महामहिम मन्त्री महोदयको यह बता देना में अपना कर्त्तव्य समझता हूँ कि खिलाफतके सवालसे मेरा क्या सम्बन्ध है और उसके सम्बन्धमें में क्या-कुछ कर रहा हूँ।

युद्धकी बिलकुल प्रारम्भिक अवस्थासे ही, यानी जब में लन्दन में भारतीय स्वयं सेवकों का आहत सहायक दल तैयार कर रहा था[२] तभीसे, मैंने खिलाफत के सवालमें दिलचस्पी लेना शुरू किया। मैंने स्पष्ट देखा कि जब टर्कीने जर्मनीका पक्ष लेना तय किया[३], उस समय लन्दन में रहनेवाले मुसलमान किस तरह बेचैन हो उठे थे। जनवरी १९१५ में लौटकर भारत आनेपर यहाँ भी मैं जिस किसी मुसलमानके सम्पर्क में आया, उसे मैंने वैसी ही चिन्ता और आतुरतासे ग्रस्त पाया। और जब उन्हें गुप्त सन्धियोंकी[४] खबर लगी तो उनकी चिन्ता और भी बढ़ चली। ब्रिटेनकी नीयतके प्रति उनका मन अविश्वास से भर उठा और वे बिलकुल हताश हो गये। उस समय भी मैंने अपने मुसलमान भाइयोंको यही सलाह दी कि आप लोग निराश न हों, बल्कि अपनी आशाओं और आशंकाओंको व्यवस्थित और अनुशासित ढंगसे प्रकट करें। और यह मानना पड़ेगा कि भारत के सभी मुसलमानोंने गत पाँच वर्षों में अद्वितीय आत्मसंयमका परिचय दिया है, और नेतागण अपनी जातिके उपद्रवी लोगोंको पूरी तरह नियन्त्रण में रखने में सफल हुए हैं।

  1. टर्कीके साथ शान्ति स्थापित करनेसे सम्बन्धित सन्धि-पत्र ११ मई, १९२० को पेरिसमें टर्की सरकारके शिष्टमण्डलको सौंपा गया। इस सन्धिकी शर्त भारतमें १४ मई, १९२० को प्रकाशित की गई और साथमें भारतीय मुसलमानोंके नाम वाइसरायका सन्देश भी। इसी सन्देशके परिणामस्वरूप गांधीजीने यह पत्र लिखा था।
  2. अगस्त १९१४ में।
  3. नवम्बर १९१४ में।
  4. देखिए "खिलाफत" १२-५-१९२० की पाद-टिप्पणी ३।