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२३८. पत्र : सी॰ एफ॰ एण्ड्र्यूजको

२० जून, १९२०

तुम खिलाफत और अन्य प्रश्नोंपर[१] अपने हृदयकी बात मुझे बराबर लिखते रहे हो, जब कि मैं तुमको कोई भी उत्तर नहीं दे सका। इसका कारण यह है कि आजकल मुझपर कामका दबाव बहुत रहता है। फिर भी तुम यह तो जानते ही हो कि तुम्हारा स्मरण मुझे सदैव रहता है। में जानता हूँ कि आध्यात्मिक प्रश्नोंको तुम कितनी गम्भीरता से लेते हो। मैं आशा रखता हूँ कि तुम्हारा स्वास्थ्य पहलेसे अच्छा होगा। तुमने मुझे लिखा था कि कलकत्तेसे लौटने के बाद तुम्हारी तबीयत बहुत गिर गई थी।

मैं चाहता हूँ कि टर्कीके प्रश्नके बारेमें मेरी जो स्थिति है, उसकी तुम चिन्ता न करो। मुझपर इतना विश्वास करो कि मैं कुछ भी आँख मूँदकर नहीं करूँगा। टर्कीके प्रश्नपर में ऐसा जरा भी बँध नहीं गया हूँ कि उसकी स्थिति अनीतिमय साबित हो जानेपर भी अपना कदम वापस न ले सकूँ। मेरी स्थिति विषम इस प्रकार है कि लॉयड जॉर्जपर मुझे जरा भी भरोसा नहीं है। जैसे मुझे अरबके मामले में अविश्वास है, वैसे ही मुझे आर्मीनियाके मामले में भी कुछ अविश्वास है। मौजूदा ब्रिटिश कूटनीतिके विरुद्ध मेरे मन में ऐसा सन्देह बैठ गया है कि आर्मीनिया, अरब, मेसोपोटामिया, फिलिस्तीन और सीरिया के मामले में मुझे किसी कुटिल राजनीतिज्ञका गन्दा हाथ होने की बू आ रही है। इसलिए इस वक्त मेरी स्थिति यह है कि ज्यों ही मेरा सन्देह दूर हो जायेगा त्यों ही मुझे अपना जो रवैया प्रतिपादनीय नहीं मालूम होगा, उसे में छोड़ दूँगा। मैं आर्मीनिया, मेसोपोटामिया, फिलिस्तीन और सीरियापर [टर्कीके सुलतानका] अधिराजत्व चाहता तो अवश्य हूँ, लेकिन कुछ उचित संरक्षणोंके साथ। तुम कहते हो, संरक्षणोंका मूल्य ही क्या है? इसमें में तुमसे सहमत नहीं हूँ। मित्र-राष्ट्रोंके मनमें मैल हो और वे एक-दूसरेसे ईर्ष्या करते हों, तब हो सकता है, संरक्षणोंका मूल्य कुछ न हो। परन्तु उनके दिल साफ हों, तो संरक्षण अवश्य कारगर हो सकते हैं। ब्रिटेन ट्रान्सवालपर अधिराजत्वका दावा करता है, परन्तु उससे ट्रान्सवालके आन्तरिक व्यवहारमें कोई खलल नहीं पड़ता। यदि आर्मीनियाको भी उसके यहाँ टर्कीका रेजीडेंट रहनेके बावजूद पूरी आन्तरिक स्वतन्त्रता मिलती हो तो उसे क्यों शिकायत होनी चाहिए? यदि टर्कीके प्रति ब्रिटेनके इरादे अच्छे हों, तो सारी बात सन्तोषजनक ढंगसे निबटाई जा सकती है। टर्कीने यदि मित्र राष्ट्रोंका साथ दिया होता, तो क्या ब्रिटेन उससे आर्मीनिया, अरब और मेसोपोटामिया छीन सकता? तब ब्रिटेन टर्कीपर विजेतावाली धौंस जमानेके बजाय मित्रताके ढंगपर दबाव डालकर क्या वहाँ सुधार करवाने की कोशिश नहीं करता? ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल जो उद्धतता और

  1. देखिए "पत्र : सी॰ एफ॰ एण्ड्र्यूजको", २५-५-१९२०।