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२३७. टिप्पणियाँ
उड़ीसा अकाल

उड़ीसा सम्बन्धमें श्री अमृतलाल ठक्कर लिखते हैं कि उन्होंने और भी गाँवोंका[१] दौरा किया है और उसके आधारपर ऐसा जान पड़ता है कि अकालका क्षेत्र अनुमानसे अधिक व्यापक है। इस क्षेत्रमें आने-जानेके साधन कम हैं तथा लोग इतने गरीब हैं कि उनकी ओरसे कोई शिकायत नहीं आती; जान पड़ता है इसीलिए बाहरवालों को कुछ खबर नहीं मिली। ये बेचारे तो जो स्थिति होती है उसे भोगते चले जाते हैं। कोई व्यक्ति अपने-आप तरस खाकर उनके बीच जाये और उनकी स्थितिकी जाँच करे तभी खबर पड़े। हिन्दुस्तान में ऐसी विषम स्थिति तो कितनी जगह होगी कौन कह सकता है। एक समाचारपत्र में उक्त क्षेत्रके बारेमें यह बताया गया है कि इस भागका धरातल नीचा है और इसलिए वहाँ हर साल मध्य भारतकी ओरसे आनेवाली बाढ़का पानी भर जाता है। इसे रोकने के लिए कुछ बाँधोंका निर्माण किया गया था; वे अब कमजोर पड़ गय हैं। कुछ एक स्थानोंपर नए बाँध बाँधनेकी आवश्यकता है। जबतक यह नहीं होता तबतक वहाँ बाढ़से नुकसान होता ही रहेगा। इस पत्र में इसका उपाय करनेके लिए यह सुझाव दिया गया है कि सरकार इंजीनियरोंको इकट्ठा करके उनकी राय ले और तदनुसार उचित कदम उठाये। हम आशा करते हैं, श्री अमृतलाल ठक्कर अवकाश मिलने पर इस बातकी भी जाँच करेंगे कि अकाल रोकने के लिए अन्य क्या कदम उठाये जाने चाहिए। वे इन अभागे लोगोंकी स्थायी निर्धनताके कारणोंकी भी जाँच करेंगे।

पाठक यह जानकर प्रसन्न होंगे कि श्री ठक्करके प्रयत्नोंसे तथा कलकत्ताके प्रसिद्ध गुजराती व्यापारी श्री करसनदासकी सहायतासे कलकत्ते में भी अकालके लिए अठारह हजार रुपये की राशि इकट्ठी हो गई है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २०-६-१९२०
  1. देखिए "उड़ीसा संकट", १२-५-१९२०।