पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५७२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५४०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
संसारमें सर्व प्रथम पाँच अस्पताल भारत में खोले गए थ। यूरोपके प्राचीन चिकित्सकोंने भारतकी औषधियोंका उपयोग किया था। ईसवी पूर्व छठी शताब्दी में भारतीयोंने मानव शरीर-शास्त्रका अध्ययन किया और उसी समय शल्य-चिकित्साकी विद्या भी हस्तगत की। आज लोहेके जैसे स्तम्भ बनाये जा सकते हैं वैसे स्तम्भ बनानेकी कला भारत प्राचीन कालमें जानता था। गुफाएँ खोदनेका कौशल तो हिन्दुस्तानके ही पास था। जब सिकन्दर भारत आया तब उसे पंजाब और सिन्धमें प्रजातन्त्र राज्य मिले। प्राचीन हिन्दुस्तान में हमारी स्त्रियोंको वे सब अधिकार प्राप्त थे जिन अधिकारोंके लिए आज यूरोपकी स्त्रियाँ लड़ रही हैं। चन्द्रगुप्तके राज्यकालमें नगरपालिकाएँ थीं। व्याकरण-विद्याको तो हिन्दुस्तानने ही सम्पूर्णता तक पहुँचाया था। आजतक 'रामायण', 'महाभारत' की होड़ कर सकनेवाले ग्रन्थोंकी रचना नहीं हो सकी है।"

ये सारे तथ्य किस हदतक सही हैं सो में नहीं जानता। लेकिन इतना अवश्य जानता हूँ कि यदि स्वर्गीय न्यायमूर्ति रानडे[१] आज जीवित होते तथा भारतकी प्राचीन गौरव गाथाकी इन सारी बातोंको सुनते अथवा पढ़ते तो वे अवश्य ही कहते कि 'इससे क्या होता है।' वे कहते कि कोई राष्ट्र अपने स्वर्णिम अतीतको याद करके आगे नहीं बढ़ सकता। यदि उसे याद किया ही जाए तो सिर्फ आगे बढ़ने की बातको ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए। आज 'रामायण' को लिखनेवाले व्यक्ति कहाँ हैं? प्राचीन कालकी नीति आज कहाँ है? उस समयकी कार्यदक्षता और कर्त्तव्य- परायणता कहाँ है? जिन औषधियोंकी सहस्रों वर्ष पूर्व खोज की गई थी, क्या उनमें हम कोई वृद्धि कर सके हैं? प्राचीन ग्रन्थोंमें जिन औषधियोंका वर्णन है, उनकी हमें पूरी जानकारी भी नहीं है। उसी तरह ऊपर उल्लिखित अन्य सब विभूतियोंके सम्बन्धमें अपना दारिद्र्य स्पष्ट ही दिखाई दे रहा है। प्रत्येक वस्तु हम यूरोप से उधार ले रहे हैं। मुझे तो लगता है कि जबतक हम अपने गौरवमय अतीतका वर्तमानकालमें पुनरुद्धार नहीं कर सकते तबतक पुरानी पूँजीके सम्बन्धमें चुप रहना ही बुद्धिमानी है। जिस पूँजीका हम कुछ लाभ नहीं उठा सकते, जिसको हम संसारके आगे नहीं रख सकते कि वह उसे परखकर देख ले तबतक वह हमें गौरवान्वित नहीं लज्जित करती है और केवल बोझस्वरूप है। प्राचीन कालमें उपर्युक्त विभूतियाँ हम लोगोंमें मौजूद थीं, यदि हम ऐसा मानते हों तो उन्हीं विभूतियोंको फिरसे प्रगट कर बताने की हममें शक्ति होनी चाहिए। हम [निस्सन्देह] वीर लोगोंकी सन्तानें हैं लेकिन यदि इस विरासतको शोभान्वित करनेकी हममें ताकत नहीं है तो इससे हमारा कुछ भी लाभ नहीं होगा। अगले अंक में हम इसपर विचार करेंगे कि इस प्राचीन विरासतको हम कैसे गौरवान्वित कर सकते हैं।

[गुजराती से]
नवजीवन, २०-६-१९२०
  1. महादेव गोविन्द रानडे (१८४२-१९०१); विद्वान् और समाज-सुधारक जिन्होंने गोखलेको उनके आरम्भिक जीवनमें प्रशिक्षित किया था।