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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूसरे किसी प्रश्नको लेकर हमारी ओरसे तनिक भी भूल होने की सम्भावना न हो तो असहकार [ आन्दोलन ] को हम तत्काल ही पूर्ण वेगसे चला सकते हैं। उसे विभिन्न चरणोंमें जो बाँटा गया है सो इसी विचारसे प्रेरित होकर तथा यह मानते हुए कि आत्मत्याग हिन्दुस्तानकी उन्नति के लिए आवश्यक धर्म है। असहकारके सम्बन्धमें तनिक भी आशंका नहीं करनी चाहिए, वरन् हमें समझ लेना चाहिए कि असहकार अथवा इस तरहके अन्य किसी भी यज्ञ अथवा तपके बिना न तो हम खिलाफतके प्रश्नको सुलझा सकते हैं, न पंजाब के सम्बन्ध में न्याय प्राप्त कर सकते हैं और न ही स्वराज्यका उपभोग कर सकते हैं।

[गुजराती से]

नवजीवन, २०-६-१९२०


२३५. मैं क्या करूँ ?

श्रीमती पोलकने मुझे एक चित्र भेजा है। अस्सी वर्षके श्री ग्लेडिंग नामके एक अंग्रेज सज्जन उसमें चरखेसे ऊन कात रहे हैं। यह धन्धा उन्होंने मन बहलावकी खातिर इस उम्र में शुरू किया है। वे वृद्ध अपना सारा दिन बातोंमें नहीं बिता सकते, सारा दिन 'बाइबिल' भी नहीं पढ़ सकते, और इस उम्रमें घरमें खेले जानेवाले खेलोंमें भी वे क्या दिलचस्पी लें -- फिर खेलनेके लिए कोई साथी भी तो चाहिए और सबको साथी सुलभ नहीं हो पाते --तब यदि मन बहलानेका कोई उपयोगी तरीका मिल जाये तो अच्छा हो, यह विचारकर ही इस वृद्धने चरखेको पसन्द किया होगा।

इस चित्रके मेरे हाथमें आने से पहले मेरे पास एक सज्जन, जो पहले कहीं अच्छे पदपर रह चुके हैं, आये थे। उनका समय किसी तरह भी व्यतीत नहीं होता था। सारा दिन वे माला जपने में बिता नहीं सकते थे और इसलिए वे किसी न किसी परोप- कारी धन्धेकी तलाशमें थे। मुझे अनेक प्रवृत्तियोंवाला व्यक्ति समझकर वे मुझसे सलाह लेने के लिए आये। मुझे तो विचार करनेपर उनकी अवस्थाके योग्य चरखेके अलावा दूसरा कोई धन्धा नहीं सूझा। मैंने उनसे विनयपूर्वक चरखा कातनेकी बात कही। किन्तु शायद मेरी बात उन्हें जँची नहीं। कदाचित्, उनके मनमें मेरे प्रति जो आदर- भाव था, उसे भी मैंने खो दिया।

कुछ लोग यह मानते हैं कि चरखा चलाना केवल स्त्रियोंका काम है। पुरुषोंके सम्मुख चरखेकी बात करना उनका अपमान करना है। मैं ऐसा नहीं मानता; मेरी तो यह धारणा है कि जन-समाजको पोषित करनेवाली सभी प्रवृत्तियाँ दोनोंके लिए हैं। स्त्रियोंसे पुरुषों जितनी शारीरिक मजूरी नहीं हो सकती तथा स्त्रियां पुरुषों जितनी स्वतन्त्रता से बाहर जाकर काम नहीं कर सकतीं, इसलिए चरखेकी प्रवृत्तिको मुख्य रूप से स्त्रियोंकी प्रवृत्ति माना गया है; और यह उचित भी है।

रसोईका काम मुख्यतया स्त्रियाँ करती हैं तथापि अनेक परिवारोंमें रसोईके लिए पुरुष ही नियुक्त होते हैं। वैसे ही यद्यपि सामान्यतया स्त्रियाँ ही चरखा चलाती हैं,