पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५५९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२७
मुसलमानोंका निर्णय

लोगोंको अधिकारियोंके अत्याचारको कभी भी स्वीकार नहीं करना चाहिए। आवश्यक समझें तो संसदके पास शौकसे प्रार्थनापत्र भेजें, पर यदि संसद हमारे साथ न्याय न करे, और यदि हम अपनेको एक राष्ट्र कह सकने के योग्य हैं तो हमें चाहिए कि हम उसे अपना सहयोग देने से इनकार करके यह स्पष्ट कर दें कि उसके अस्तित्वको कायम रखने में हम कोई योग नहीं देना चाहते।

[अंग्रेजी से]

यंग इंडिया, ९-६-१९२०

२२६.मुसलमानोंका निर्णय

इलाहाबादकी खिलाफत सभाने सर्वसम्मति से असहयोगके सिद्धान्तको स्वीकार कर लिया है, और एक विस्तृत कार्यक्रम निश्चित और कार्यान्वित करनेके लिए एक समिति नियुक्त की है। इस सभाके पहले हिन्दू-मुसलमानोंकी एक संयुक्त सभा भी की गई थी, जिसमें हिन्दू नेताओंसे अपना-अपना मत प्रकट करनेके लिए कहा गया । उस सभा में श्रीमती बेसेंट, माननीय पण्डित मालवीयजी, माननीय डाक्टर सप्रू, मोती- लाल नेहरू, चिन्तामणि आदि प्रमुख नेता उपस्थित थे । भिन्न-भिन्न मतोंके हिन्दू नेताओंको उनकी राय जाननेके लिए निमन्त्रित करके खिलाफत समितिने बुद्धिमानीका काम किया। श्रीमती बेसेंट तथा डाक्टर तेजबहादुर सप्रूने मुसलमानोंको जोरदार शब्दों में असहयोगकी वर्तमान नीतिको माननेकी सलाह दी। अन्य हिन्दू नेताओंने पहलू बचाकर भाषण दिये। इन नेताओंने अपने भाषणोंमें सिद्धान्ततः तो असहयोग आन्दोलनको स्वीकार किया, पर उसके संचालन में अनेक तरहकी व्यावहारिक कठिनाइयाँ बताईं। उन्हें इस बातका भी भय था कि यदि मुसलमानोंने अफगानोंको भारतपर आक्रमणके लिए निमन्त्रित किया तो बखेड़ा मच सकता है। इसपर मुसलमान वक्ताओंने स्पष्ट शब्दोंमें कहा कि यदि कोई भी विदेशी शक्ति भारतपर आक्रमण कर उसे अपने अधीन करनेकी चेष्टा करेगी तो उसके प्रतिरोधमें एक-एक मुसलमान बलिदान हो जायेगा, किन्तु उन्होंने यह बात भी स्पष्ट रूपसे कही कि यदि कोई बाहरी शक्ति

१. यह सभा खिलाफत समितिके तत्त्वावधान में ९ जून, १९२० को हुई थी।

२. देखिए “भाषण: खिलाफत समितिकी बैठक", ३-६-१९२० की पाद-टिप्पणी १।

३. सर तेजबहादुर अम्बिकाप्रसाद सप्रू (१८७५-१९४९); प्रसिद्ध वकील; १९२०-२२ में वाइसराय की कार्यकारिणी में कानून-सदस्थ; १९२३ और फिर १९२७ में लिवरल फेडरेशनके अध्यक्ष।

४. सर चि० य० चिन्तामणि (१८८०-१९४१); प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक और राजनीतिज्ञ इलाहाबादके अंग्रेजी दैनिक लीडरके सम्पादक; १९२० तथा '३७ में लिवरल फेडरेशनके अध्यक्ष।

५. तृतीष अफगान-युद्धको समाप्तिके बाद अगस्त १९१९ में शान्ति सन्धि होनेके बाद भी भारत और अफगान सरकारोंके सम्बन्ध तनावपूर्ण ही थे। सीमान्त क्षेत्रों में लगातार संघर्षोंके कारण अप्रैल १९२० में दोनों सरकारोंके बीच मसूरीमें होनेवाली वार्ता एक माहतक स्थगित रही थी।