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राजनैतिक बन्धुत्व

अधिकांश सदस्योंने उसपर जो आक्षेप लगाये हैं और जिनका अंशत: समर्थन अल्पमत- वाले सदस्योंने भी किया है, उनसे भी कटु आक्षेपोंसे उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। यदि रिपोर्टमें केवल इतना ही दोष होता, और यदि वह अन्य सब बातोंमें ठीक होती तो हम उसकी प्रशंसा ही करते; क्योंकि कुछ भी हो, राजनैतिक क्षेत्र में सत्याग्रह एक नया ही प्रयोग है, और यदि कोई व्यक्ति जल्दबाजी में किसी भी जन-अशान्तिकी जिम्मेदारी सत्याग्रहपर थोप दे तो उसे क्षम्य ही माना जायेगा।

जाँच समितिकी रिपोर्ट तथा भारत सरकारके खरीतोंमें जो इस प्रकार सर्वत्र विरुद्ध मत प्रकट किया गया है, उसका आधार कुछ ऐसी जानकारियाँ हैं, जो अत्यन्त दुःख पहुँचानेवाली हैं। उदाहरणके लिए इस रिपोर्टमें अधिकारियों द्वारा किये गये प्रत्येक अमानुषिक कार्यको प्रयत्नपूर्वक उचित सिद्ध करनेकी कोशिश की गई है; और यदि उनके कार्योंकी कहीं भर्त्सना की भी गई है तो वहीं जहाँ उसके बिना काम ही नहीं चल सकता था । कारण यह था कि कहीं-कहीं स्वयं उन अधिकारियोंने अपने अन्यायपूर्ण कार्योंको कुछ इस भावसे स्वीकार कर लेनेकी धृष्टता दिखाई थी कि उन्होंने ऐसा करके कुछ बुरा नहीं किया। जनरल डायर द्वारा अपनी करनी कबूल करनेके बावजूद उनके बचाव में तर्क प्रस्तुत किये गये हैं। सर माइकेल ओडायरके ही संकेतपर उनके मातहतोंने अत्याचारपूर्ण कार्य किये थे, फिर भी रिपोर्टमें उनकी प्रशंसा की गई है। यह भी ध्यान देनेकी बात है कि समितिने अप्रैलको दुर्घटनाओंके पहले, सर माइकेलने जो कुछ किया था, उसकी परीक्षा तथा जाँच करने से इनकार कर दिया। उनका आचरण इतना दोषपूर्ण था कि समितिको उसपर न्यायिक तौरपर ध्यान देना चाहिए था। अधिकारीवर्गकी ओरसे जो बातें कही गईं उन्हींपर भरोसा न करके, समितिको उचित था कि वह खुद उपद्रवके असली कारणोंको ढूंढ़ निकालनेकी चेष्टा करती। इन उपद्रवोंकी असलियतका पता लगाने के लिए उसे हर तरहके उपायोंका प्रयोग करना चाहिए था। प्रयासपूर्वक अधिकारियों द्वारा खड़ी की गई झूठकी दीवारको बेध- कर सचाईका पता चलाने के बजाय समितिने केवल सरकारी बयानोंपर भरोसा करना ही ठीक माना । यदि यह उसका आलस्य था तो अपराधपूर्ण आलस्य था । समितिकी रिपोर्ट तथा भारत सरकारके खरीतोंको पढ़कर यही धारणा बनती है कि इसके द्वारा अधिकारीवर्गकी उच्छृंखलताको माफ करनेकी कोशिश की गई है। जनरल डायर द्वारा किये गये कत्लेआम तथा पेटके बल रेंगनेकी घृणित आज्ञाकी जिस तरह बच-बचकर और अनिच्छासे निन्दा की गई है, उसे पढ़कर पाठकके मनमें और भी निराशा छा जाती है, और वह साफ देखता है कि यह रिपोर्ट अधिकारियों द्वारा अपनी काली करतूतोंपर पर्दा डालनेकी कोशिश मात्र है। इस रिपोर्ट तथा भारत सरकारके खरीतों- की निन्दा सभी देशी पत्रोंने की है, चाहे वे नरम दलके रहे हों या गरम दलके। इसलिए उनकी यहाँ सविस्तार समीक्षा करनेकी आवश्यकता नहीं। प्रश्न यह है कि अधि- कारियोंके अन्यायको उचित ठहराने के इस गुप्त षड्यन्त्रका चाहे गोपनीयता बिलकुल अनजाने ही क्यों न बरती गई हो--भंडाफोड़ कैसे किया जाये। यदि भारतको

१. अप्रैल १९१९ की घटनाएँ।