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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

था। इस विश्वासको पहला धक्का उस समय लगा जब लॉर्ड हंटरकी समितिने कांग्रेस समितिकी इस अत्यन्त मामूली और उचित माँगको अस्वीकार कर दिया कि पंजाबके बन्दी नेताओंको अपने वकीलोंको मदद देनेके लिए हंटर समितिके सामने उपस्थित होनेकी अनुमति दी जाये। अगर तब भी किसीके मनमें कुछ विश्वास रह गया था तो इस समितिकी बहुमत रिपोर्टसे वह समाप्त हो गया है। जो परिणाम निकला उससे यही कहना पड़ता है कि इस सम्बन्ध में कांग्रेसका रवैया ठीक ही था । कांग्रेस समितिने जो साक्ष्य इकट्ठा किया है, उसे पढ़कर स्पष्ट विदित हो जाता है कि हंटर समितिने कितनी ही बातें जान-बूझकर अपने सामने नहीं आने दीं।

हंटर समितिकी अल्पमत रिपोर्ट' मरुस्थलमें जलाशयके समान है। इन हिन्दुस्तानी सदस्योंने जबरदस्त कठिनाइयोंके बावजूद जिस साहसके साथ अपने कर्त्तव्यका पालन किया उसके लिए वे अपने देशवासियोंके धन्यवादके पात्र हैं। सत्याग्रहके सविनय अवज्ञावाले रूपकी भर्त्सनामें उन्होंने जिस नरम स्वरमें योग दिया यदि वह भी न दिया होता तो कितना अच्छा होता। ३० मार्चको दिल्लीकी जनताने जिस उग्र भावनाका परिचय दिया था केवल उसके आधारपर ही एक ऐसे महान् आध्यात्मिक आन्दोलनकी निन्दा करना अनुचित है, जिसका उद्देश्य सिद्धान्ततः और प्रकटतः जनसमूहकी हिंसात्मक प्रवृत्तियोंको शान्त करना, और अपराधमूलक अराजकताका सहारा लेनेके स्थानपर जब सरकार अपनी कारगुजारियोंसे सम्मानकी सारी पात्रता खो दे उस समय उसके विरोध में सत्ताकी सविनय अवज्ञा करना है। ३० मार्चको तो सविनय अवज्ञा आरम्भतक नहीं की गई थी। संसारमें आजतक जहाँ-कहीं भी बड़े पैमानेपर जन- भावनाका प्रदर्शन हुआ है, वहाँ उस अवसरपर थोड़ा-बहुत उपद्रव अवश्य हुआ है। ३० मार्च और ६ अप्रैलके प्रदर्शन सत्याग्रहके नामपर न किये जाकर किसी और नामसे भी किये जा सकते थे। पर मेरा विचार है यदि लीगमें विनय और व्यवस्थाकी भावना न होती तो कानूनकी अवज्ञाने जैसा हिंसात्मक रूप दिल्लीमें ग्रहण किया, उससे कहीं अधिक भयंकर रूप धारण किया होता। अगर जनताने उतनी शीघ्रतासे सत्याग्रहके सिद्धान्तको स्वीकार न कर लिया होता तो हिंसाके उबालको सारे देशमें फैलने से इस तरहसे कारगर ढंग से नहीं रोका जा सकता था। और आज भी जो लोगोंने अपने भीतरकी स्पष्ट बेचैनीको हिंसाके रूपमें फूट पड़नेसे रोक रखा है वह कुछ डायर साहबकी घोर बर्बरताको याद करके नहीं। सत्याग्रह लोगोंपर हावी हो गया है और जबरन् ही हावी हो गया है, उसीके कारण उनसे उपद्रव और हिंसाका ओर कदम नहीं उठाया जाता है। लेकिन में सत्याग्रहपर किये इन अनुचित आक्षेपोंके खिलाफ सफाई पेश करने में पाठकोंका अधिक समय नहीं लेना चाहता। यदि वास्तव में सत्या- ग्रह भारतकी जनतापर अपना कुछ भी प्रभाव डालने में समर्थ हुआ है तो हंटर समितिके

१. हंटर समितिके अल्पसंख्यक भारतीय सदस्योंने अपनी अलग रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसका सार भारत सरकारके खरीतेमें दिया गया है। देखिए परिशिष्ट ४।

२. दिल्लीके सत्याग्रहियोंने रविवार, ३० मार्चका दिन, रौलट अधिनियमके विरुद्ध अपना रोष प्रकट करनेके लिए, राष्ट्रीय अपमान और प्रार्थना-दिवसके रूपमें मनाया था। भीइने कुछ उपद्रव किये थे।