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२२२. भाषण: खिलाफत समितिको बैठकमें '

[३ जून, १९२०]

महात्मा गांधीने बड़ा सारगर्भित भाषण दिया जिसे लोगोंने बहुत ही शान्तिसे सुना। उन्होंने कहा कि में अच्छी तरह जानता हूँ कि मुसलमान महसूस करते हैं कि भारतके सामने अब चार चरणोंमें असहयोग अपनाने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। उनके साथ मेरी पूरी सहानुभूति है और शान्ति सन्धिमें परिवर्तन कराने के उनके प्रयत्नोंमें पूरा सहयोग देने के लिए मैं तैयार हूँ। मेरे विचारसे यह संघर्ष झूठी ईसाइयत और सच्चे इस्लामके बीच होनेवाला संघर्ष है। एक ओर शस्त्रास्त्रोंका बल है और दूसरी ओर नैतिकताका। हम यह युद्ध नैतिक बलके जोरपर जीतना चाहते हैं।असहयोग आन्दोलन चार चरणोंमें किया जायेगा। लेकिन पहला चरण प्रारम्भ करनेसे पहले हम परमश्रेष्ठ वाइसराय महोदयसे अपनी बात अर्ज करें और उन्हें इस बातके लिए एक महीनेका समय दें कि वे शान्ति-संधिकी शर्तोंमें मुसलमानोंकी माँगोंके अनुरूप परिवर्तन करवा दें, और अगर वे ऐसा न करवा सकें तो अपना पद छोड़कर असहयोग आन्दोलन में शामिल हो जायें। एक महीने के बाद प्रथम चरणको कार्यान्वित किया जायेगा।श्री गांधीने कहा कि जो लोग मेरे साथ काम करनेको तैयार हों, उनकी एक समिति बना दी जाये, जिसे असहयोगकी योजनाको कार्यान्वित करानेकी पूरी सत्ता दी जाये और जिसके निर्णय सभी लोगोंके लिए बन्धनकारी हों। उन्होंने बहिष्कारको अव्यवहार्य बताते हुए उसके प्रति असहमति प्रकट की और उसके बदले स्वदेशी अपनानेको कहा।उन्होंने लोगोंसे किसी भी रूपमें हिंसा न करनेका अनुरोध किया।

[अंग्रेजीसे]

अमृतबाजार पत्रिका, ७-६-१९२०



१ व २. १ और २ जून को इलाहाबाद में हिन्दुओं और मुसलमानोंका एक संयुक्त सम्मेलन हुआ था और उसके बाद ३ जून, १९२० को इलाहाबाद में ही अखिल भारतीय केन्द्रीय खिलाफत समितिको बैठक हुई थी। यह भाषण गांधीजीने उसी बैठकमें दिया, जिससे स्पष्ट है कि यह ३ जूनको ही दिया गया था; देखिए " असहयोग समिति", २३-६-१९२० । इस बैठकमें पास किये गये प्रस्तावोंके लिए देखिए परिशिष्ट ३।

३. गांधीजीको असहयोग योजनापर विचार करनेके लिए बम्बईमें अखिल भारतीय खिलाफत समितिकी बैठक हुई थी, जिसमें यह योजना २८ जूनको मुसलमानोंके लिए एक मात्र सम्भव उपायके रूपमें अपना लो गई थी।