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खिलाफत: कुछ और प्रश्नोंके उत्तर

है। पर जो-कुछ दुःखदायी अनुभव मुझे उस समय हुआ, उससे न तो सत्याग्रहमें मेरा विश्वास तनिक भी हिला और न मेरी इस मान्यतामें ही कोई कमी आई कि भारतमें इस अद्वितीय शक्तिका उपयोग किया जा सकता है। पहले जो भूलें हो गई हैं, उनको न होने देने के लिए इस बार पर्याप्त प्रबन्ध किया जा रहा है। लेकिन हिंसाको रोकनेके लिए पर्याप्त प्रबन्ध करनेपर भी यदि घटनावश कहीं हिंसा हो जाये तो केवल उसके भयसे मैं उस रास्तेको नहीं छोड़ सकता जो बिल्कुल स्पष्ट है। साथ ही में अपनी स्थिति स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। ऐसा नहीं हो सकता कि सच्चा सत्याग्रही सरकारकी टेढ़ी भौंसे डरकर अपना कर्तव्य छोड़ दे। जरूरत पड़नेपर में दस लाख आदमियोंका बलिदान कर दूंगा, बशर्ते कि इस तरह बलिदान होनेवाले व्यक्ति स्वेच्छासे कष्ट भोगनेवाले हों, और निर्दोष तथा निष्कलंक चरित्रके व्यक्ति हों। सत्याग्रह आन्दो- लनमें जनताकी भूलोंपर ही सबसे अधिक ध्यान रखना होता है। जो शक्तिशाली है, सत्तासम्पन्न है, वह गलतियां ही नहीं पागलपन भी कर सकता है; और यदि जनताने उन गलतियों और पागलपनका जवाब उसी तरह पागलपनसे न दिया और उसको स्वेच्छासे शालीनता और शान्तिके साथ बरदाश्त कर लिया, लेकिन गलती करने- वाली सत्ताको इच्छाके सामने सर नहीं झुकाया तो विजय निश्चित है। अतः सफ- लताकी कुंजी इसीमें है कि हम लोग प्रत्येक अंग्रेज तथा प्रत्येक सरकारी कर्मचारी- की जान उतनी ही पारी और बहुमूल्य समझें जितनी हम अपने बन्धुओंकी समझते हैं। होश सम्हालने के बाद जीवनके विगत चालीस वर्षोंमें मुझे जो अनुभव मिला है, उससे मैंने यही सार निकाला है कि जीवनसे बड़ा और कोई वरदान नहीं हो सकता। मैं तो कहूँगा कि जिस समय अंग्रेज लोगोंको यह विश्वास हो जायेगा कि उनकी संख्या भारत में अत्यन्त नगण्य होनेके बावजूद उनका जान-माल पूर्णतया सुरक्षित है और इसका कारण उनके विनाशकारी अस्त्र नहीं बल्कि यह है कि भारतीय उन लोगोंको भी मारना उचित नहीं समझते जिन्हें वे भीषण भूल करते पाते हैं, तो उसी दिन आप देखेंगे कि भारतके प्रति अंग्रेजोंका रवैया बदल जायेगा और उसी दिनसे उन सब विनाशकारी शस्त्रास्त्रोंकी उपयोगिता भी समाप्त हो जायेगी, जो आज भारतमें उपलब्ध हैं। मैं जानता हूँ कि यह एक बहुत दूरकी चीज है । पर में इसकी कोई चिन्ता नहीं करता। यदि मुझ प्रकाश दिखाई दे रहा है तो मेरा कर्त्तव्य उसीको लक्ष्य मानकर आगे बढ़नेका है और यदि इस पथपर मुझे साथी मिलते जायें तो में इसे पर्याप्त सफलता मानूंगा। मैंने अपने अंग्रेज मित्रोंसे निजी बातचीत में इस बातका दावा किया है कि चूँकि में लगातार अहिंसाकी शिक्षा देता चला आ रहा हूँ और मैंने इसकी पूर्ण व्यावहारिक उपयोगिता सफलतापूर्वक सिद्ध कर दी है, इसीलिए खिलाफत आन्दोलनके सम्बन्धमें लोगोंके हृदयमें जो हिंसाकी प्रवृत्ति मौजूद है, वह पूरी तरह काबूमें रही है।

(७) धार्मिक दृष्टिसे सातवें प्रश्नपर विचार करना ही निरर्थक प्रतीत होता है। यदि जनता असहयोग आन्दोलनमें साथ न दे तो यह खेदकी बात होगी। किन्तु केवल इसी कारण कोई सुधारक इस अस्त्रके प्रयोगको स्थगित नहीं कर देगा। अगर