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पंजाबकी चिट्ठी-११

हिन्दुस्तानमें जन्मे और हिन्दुस्तानमें रहनेवाले सब लोगोंके लिए पवित्र स्थान है, अथवा हम उसे ऐसा बनाना चाहते हैं। हमारी इस इच्छाकी उत्पत्ति द्वेषभावमें नहीं वरन् मारे गये निर्दोष व्यक्तियोंके प्रति प्रेमभावमें है। बागका दर्शन करके हम जनरल डायरकी[१] कठोरताका स्मरण नहीं करना चाहते। लोग सदासे भूल करते आये है। उनकी भूलोंको याद रखकर हम द्वेषभावनाको पोषित नहीं करना चाहते, पर निर्दोष व्यक्तियोंकी यादको भुलानेसे राष्ट्रका नाश होता है। निर्दोष व्यक्तियोंका निरपराध मारा जाना इस देशके लिए एक ऐसा अवसर है जिसका उपयोग करके वह ऊपर चढ़ सकता है। और जिस तरह खर्चीला व्यक्ति अपने धनको सँभालकर न रखने के कारण भिखारी बन जाता है, ठीक उसी तरह जिस राष्ट्र के लोग ऐसी घटनाकी स्मृतिको अपने मनमें सँजोकर नहीं रखते वे भी भिखारी बन जाते हैं। इसके विपरीत यदि वे इस धनका संग्रह करते है तो अवश्य उन्नति करते हैं। पाँच सौ अथवा एक हजार निर्दोष व्यक्ति यदि ज्ञानपूर्वक मृत्युका आलिंगन करें तो वह देश एकाएक ऊँचा उठ सकता है और उसका परिणाम इतना महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है कि वह एक चमत्कार माना जाये। जलियाँवाला बागमें जिस तरहसे निर्दोष व्यक्तियोंकी मृत्यु हुई है उससे हमें चमत्कारपूर्ण परिणामकी उपलब्धि भले ही न हो, लेकिन वह घटना हिन्दू-मुसलमानोंमें एकता स्थापित करने में, हिन्दुस्तानमें जाग्रति लाने में इस युगकी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना मानी जायेगी। इसलिए उसको चिर-स्मरणीय बनाना हमारा फर्ज है।

यह विचार यदि ठीक हो तो पाँच लाख रुपया इकट्ठा करने में छोटे-बड़े, गरीब-अमीर सभी भाग ले सकते हैं। एक ही व्यक्ति पाँच लाख रुपये दे दे तो अपने आलस्य और निष्क्रियताके कारण हम प्रसन्नता अनुभव करेंगे लेकिन इससे बागकी पवित्रताकी कीमत कम हो जायेगी। यदि तीन करोड़ बीस लाख व्यक्ति एक-एक पैसा दें तो पाँच लाख रुपया इकट्ठा हो जायेगा तथा यह बात तो सब स्वीकार करेंगे कि इस तरहसे इकट्ठ किये गये धनसे खरीदी जानेवाली जमीन अत्यन्त पवित्र होगी। यदि एक ही दिन चितन करने के बाद इतने व्यक्ति अपने पैसे दें तो उसकी यह पवित्रता और भी बढ़ जायेगी।

आज ही से यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि इतने धनको इकट्ठा करनेके लिए किस तरहकी व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे धन-संग्रहका खर्च कम हो और चोरी न हो। इस बातका भय पैदा हो गया है कि बागके लिए धन उगाहने के बहाने लुच्चे लोग पैसा उगाहकर उसका दुरुपयोग करेंगे।

व्यावहारिक उपाय

इसका व्यावहारिक उपाय यह है कि प्रत्येक गाँवमें ईमानदार व्यक्ति पैसा उगाहने के कामका बीड़ा उठा लें और वे तुरन्त उस पैसेको मुख्य समितिके पास भेज दें। परिचितके अलावा किसी औरको पैसा कदापि न दिया जाये। परिचित अर्थात्

  1. रेनॉल्ड एडवर्ड हैरी डायर (१८६४-१९२७); अमृतसर क्षेत्रका कमान्डिंग ऑफीसर जिसने जलियाँवाला बागमें सभाके लिए एकत्रित लोगोंकी शान्त भीड़पर गोली चलानेका आदेश दिया था; देखिए "पंजावके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट", २५-३-१९२०।