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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अच्छा विचार सूझे यदि वह स्वयं उसपर अमल करना शुरू कर दे तो उसके समान दूसरी कोई अच्छी योजना नहीं हो सकती। 'विरागी' स्वयं ही अपने विचारोंको अमलमें क्यों नहीं लाते?

मातर ताल्लुकेमें डाके

एक सम्वाददाताने अपना नाम बताये बिना लिखा है कि मातर ताल्लुकेमें डाकुओं- का उपद्रव बहुत बढ़ रहा है। उसने लिखा है कि इस इलाके में वैशाख सुदी ५१ से अब- तक दो बार डाका पड़ चुका है। इस सम्बन्धमें जो लोग यह चाहते हैं कि कुछ उपाय किये जायें उन्हें चाहिए कि खबर अधिक विस्तारसे दें। नाम-धाम बताने में डरनेकी कोई जरूरत नहीं है। अब जनताको इस तरहके भय नहीं मानने चाहिए। अमुक जगहपर लूटमार हुई है, यह खबर देनेमें तो कोई खतरा नहीं है। खतरा हो तो भी सच्ची खबर देने में डरना नहीं चाहिए। उपर्युक्त घटनाके सम्बन्धमें किसी पाठकको अधिक जानकारी हो और यदि वे उक्त जानकारी दे सकें तो हमें उम्मीद है कि लोगोंको राहत दिलवाने के लिए उसका उपयोग किया जा सकेगा।

साथ ही यह कहना भी जरूरी है कि लोगोंको ऐसे उपद्रवोंके विरुद्ध स्वयं अपनी रक्षा करना सीख लेना चाहिए। गाँवके सब लोग इकट्ठे होकर उपाय करें तो हमारी मान्यता है कि डाकू लोगोंको सहज ही नहीं लूट सकेंगे।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ३०-५-१९२०


२२१. खिलाफत: कुछ और प्रश्नोंके उत्तर

इधर सार्वजनिक रूपसे मेरी बड़ी आलोचना की गई है और निजी तौरपर मुझे बहुत सारे सुझाव दिये गये हैं - यहाँतक कि मेरे पास इस सम्बन्धमें गुमनाम चिट्ठियाँ भी आ रही हैं कि मुझे क्या करना चाहिए। कुछ लोग इस कारण असन्तुष्ट हैं कि में तत्काल व्यापक असहयोग आरम्भ करनेकी सलाह क्यों नहीं देता। दूसरी ओर अन्य लोग हैं जो कहते हैं कि मैं जान-बूझकर देशको हिंसाकी आग में झोंककर देशका अहित कर रहा हूँ। इन तमाम आलोचनाओंका उत्तर देना मेरे लिए कठिन है, पर में कुछ आपत्तियोंको संक्षेपमें बताकर अपनी योग्यता-भर उनके उत्तर दूंगा । कुछ प्रश्नोंका उत्तर तो मैं पहले ही दे चुका हूँ। उनके अतिरिक्त निम्नलिखित आक्षप किये जा

(१) तुककी माँग अनैतिक या अनुचित हैं। सत्यके मार्गका अनुसरण करनेवाला मुझ जैसा व्यक्ति उनका समर्थन कैसे कर सकता है?

१. गुजरातके खेड़ा जिलेमें।

२. २० अप्रैल, १९२०।

३. देखिए "कुछ प्रश्नोंका उत्तर", १९-५-१९२०।