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२२०. टिप्पणियाँ
एक सुन्दर दृष्टान्त

उड़ीसा अकाल-कोषमें अनेक स्थानोंसे बिना किसी प्रयत्नके चंदा आ रहा है। यह स्पष्ट ही करुणाभावना तथा लोकभावनाका चिह्न है; लेकिन बम्बईके एस्प्लेनेड हाईस्कूलके दान खातेसे जो रकम आई है, वह विशेष ध्यान देनेकी बात है। इस हाईस्कूलमें एक पेटी रखी हुई है, उसमें विद्यार्थियों तथा अध्यापकोंको पैसे डालनेके लिए प्रोत्साहित किया जाता है और उस पैसेका उपयोग, किसी भी स्थानपर बिना किसी जातिबन्धनके, दुःख-निवारणके नि किया जाता है। इस पेटीमें सिर्फ हाई- स्कूलके शिक्षक, विद्यार्थी तथा कर्मचारी ही पैसे डाल सकते हैं। इसके सुनिश्चित नियम निर्धारित किए गये हैं जिससे व्यवस्थामें गड़बड़ी नहीं हो पाती। पेटीमें कमसे- कम दो आने डालनेकी बात तय की गई है; अधिक रकम देनेपर प्रोत्साहनके लिए भिन्न-भिन्न प्रमाण-पत्र दिये जाते हैं। यहाँ इन सब नियमोंकी तफसील देनेकी कोई आवश्यकता नहीं है; कहना यही है कि इस ढंगसे दान-पेटी रखनेका रिवाज अनुकरणीय है। प्रत्येक सुव्यवस्थित पाठशालामें बालकों और अध्यापकोंको यथाशक्ति दान देने के लिए प्रोत्साहित किया जाये तथा उसका सदुपयोग हो तो देशमें दुःख निवारण के लिए सहज प्रयत्नसे बड़ी रकम प्राप्त की जा सकती है तथा प्रत्येक पाठशाला अपने कष्टके समय भी उस रकमका सदुपयोग कर सकती है।

नौकरोंकी स्थितिमें कैसे सुधार हो?

'नवजीवन' के नियमित पाठकको याद होगा कि २१ सितम्ब रके अंकमें 'सर्वोदय' उपनामसे एक संवाददाताने मजदूरोंके कामके घंटोंमें कमी करनेका सुझाव दिया था। उसपर एक शिक्षित व्यापारीने 'विरागी' उपनामसे अपने विचार लिखकर भेजे हैं। उसमें वे लिखते हैं:

ये विचार प्रशंसनीय हैं, इसमें तो कोई सन्देह नहीं। लेकिन एक बार चूहोंकी सभामें बिल्लीसे सावधान रहने के लिए एक चूहेने सुझाव दिया कि बिल्लीके गलेमें एक घंटी बांधनी चाहिए ताकि उसके आनेपर आवाज होते ही सब अपने-अपने बिलोंमें भाग जायें । उस समय प्रश्न यह उठा कि घंटी बाँधेगा कौन ? उसी तरह ऐसे मह- त्कार्यको नौकरोंमें से कौन करेगा; यह सवाल उठता है । बम्बईके नौकर इतनी बड़ी संख्या में एकमत हो जायें तो यह काम तनिक भी मुश्किल नहीं है। जिस व्यक्तिको

१. देखिए खण्ड १६, पृष्ठ १६२-६३।

२. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें पत्र लेखकने 'सर्वोदय' के सामान्य विचारोंका समर्थन किया था लेकिन यह भी कहा था कि नौकरोंकी कठिनाइयोंको दूर करनेका सबसे अच्छा तरीका यह है कि सहयोगमूलक प्रवृत्तियों के संगठनमें हम उनकी मदद करें।