पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५४५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१९. विविध चर्चा

मैं जब स्वदेशीके प्रचारके निमित्त काठियावाड़का दौरा कर रहा था उस समय कुछ पत्र मुझे प्राप्त हुए थे तथा कुछ 'नवजीवन' कार्यालयके नाम सीधे उसी पतेपर मिले थे। उन सबका उसी समय 'नवजीवन' में उत्तर देना सम्भव नहीं हो पाया था। किसी-किसीको मैंने व्यक्तिगत रूपसे लिख दिया था कि अवकाश मिलनेपर उत्तर दूंगा। सब पत्रोंको मैंने अच्छी तरहसे सहेजकर रखा है। इस सप्ताह मुझे उन सबपर एक नजर दौड़ानेका अवसर मिला। उसमें कुछ- एक पत्र ऐसे हैं जो हमेशा नवीन लगते हैं; उनका में प्रसंगोपात्त उपयोग करना चाहता हूँ। ऐसा एक पत्र काठियावाड़की एक प्रख्यात एवं धर्मपरायण बहनका है। उसका कुछ भाग मैं नीचे उद्धृत कर रहा हूँ:

यह बहनके पत्रका सार है। यात्राके दौरान ऐसे ही प्रश्न अन्य लोगोंने भी पूछे थे, इस कारण में उन प्रश्नोंका उत्तर यहाँ देनेका प्रयत्न करूँगा।

पहले स्वदेशीको लें। स्वदेशी विषयक मेरी कल्पनामें मुख्य रूपसे कपड़ेका ही समावेश होता है। क्योंकि विदेशी कपड़ेके उपयोगसे हिन्दुस्तानका प्रतिवर्ष लगभग ५० करोड़ रुपया विदेशोंको चला जाता है जबकि यह सारी रकम हम अपने कारीगरोंको दे सकते हैं। पहले कपड़ेपर होनेवाले हमारे खर्चकी सारी रकम---फिर वह इतनी थी या इससे कुछ कम----देशके कारीगरोंको ही मिलती थी। फिर हमारे कारीगरोंने एवजमें कोई दूसरा धन्धा ग्रहण नहीं किया। पहले असंख्य स्त्रियाँ अपने घरोंमें निरन्तर थोड़ा-बहुत सूत कातकर हिन्दुस्तानके तनको ढकती थीं। उन स्त्रियोंकी बेटियाँ अपनी माँके पवित्र धन्धेको भूल गई हैं और उसके बदले दूसरा कोई काम भी नहीं करतीं। इस कारण देशमें भुखमरी बहुत बढ़ गई है और हम चाहे जितने प्रयत्न क्यों न करें, जबतक वे कारीगर और ये स्त्रियाँ अपने पुराने धन्धेको फिरसे ग्रहण नहीं करते तबतक हिन्दुस्तानमें आजसे चौगुनी मिलें होनेपर भी करोड़ोंकी गरीबी कम नहीं होगी। इन्हीं कारणोंसे मैंने स्वदेशीको उत्तम धर्म माना है और अभीतक मानता हूँ। सुई, होल्डर आदि देशमें तैयार हों यह स्पृहणीय है। हमें अन्ततः इस स्थितिपर पहुँचना है । लेकिन इसकी कपड़ेके साथ कदापि तुलना नहीं हो सकती। इन उद्योगोंकी हमें स्थापना करनी है; किन्तु इन उद्योगोंमें हम उन करोड़ों व्यक्तियोंको नहीं लगा सकते जो गरीब हो गये हैं। फिर जिस शक्तिके द्वारा हम असंख्य स्त्री और पुरुषोंकी मार्फत साठ करोड़ रुपयेका नया कपड़ा तैयार करवा सकेंगे वह शक्ति भविष्यमें भी काम आयेगी। साठ करोड़ रुपयेकी वार्षिक आयवाले उद्योगको भारतमें शुरू करनेके लिए आत्म-बलिदान, योजना-शक्ति, बुद्धि, प्रामाणिकता, दृढ़ता आदि गुणोंका बहुत विकास करना पड़ेगा।

१. यहाँ नहीं दिया गया है। पत्र लेखिकाने गांधीजीसे पूछा था कि क्या आप स्वदेशी आन्दोलनका, कपड़ेके अलावा अन्य क्षेत्रों में भी प्रसार करना चाहते हैं? आप अस्पृश्य जातियोंका ओर विशेष ध्यान क्यों देते हैं?

१७-३३