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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रदेशके लोगोंको हिला दिया था। ऐसे देशनायकोंको देशद्रोही अथवा खुशामदी कहना मैं पाप ममझता हूँ। उनके बहुत सारे विचार मुझे अब पसन्द नहीं आते। मेरे नये अनुभवने मुझे निस्सन्देह नई बातें सिखाई हैं। सुरेन्द्रनाथ बनर्जीके अंग्रेजीके प्रति मोह-भावको में सहन नहीं कर सकता। सर दिनशा वाछाके अर्थशास्त्रके कुछ नियमोंको मैं ग्रहण नहीं कर सकता। लेकिन इससे उनके प्रति मेरे मनमें जो पूज्यभाव है उसमें तनिक भी कमी नहीं आ सकती। उनके द्वारा की गई देशसेवाको में भूल नहीं सकता। और जिस आयुपर वे पहुँच गये हैं उसतक में पहुँच सकूं तथा तब भी मेरे मनमें देश-सेवा करनेका उनके जैसा उत्साह बना रहे तो मैं अपनेको भाग्यशाली समझूगा। तुलसीदासने लिखा है कि जड़ और चेतन दोनों ही गुण और दोषोंसे भरे हैं। लेकिन जिस तरह हंस जलरूपी विकारको तजकर केवल दूधको ग्रहण करता है, उसी तरह गुण-दोषका पृथक्करण करके, दोषोंको त्याग करके सबके गुणोंको ही ग्रहण करना हमारा काम है। हमारे सगे-सम्बन्धी और संसार यदि हमारे दोषोंको ही देखा करें तो हमारी क्या गति होगी?

मैं गुजरातकी जनतासे अवश्य यह अनुरोध करना चाहता हूँ कि उसे इस समय जो विषैली हवा बह रही है उसका त्याग करना चाहिए। उपर्युक्त पत्र इस हवाका सूचक है और इसीसे मैंने उसे यहाँ उद्धृत किया है। मेरी अपनी मातृभाषा गुजराती होने के कारण, और खास तौरसे गुजरात मेरी जन्म-भूमि होनेके कारण में यह मानत हूँ कि मैं अपने अच्छेसे-अच्छे विचारोंको जल्दी और आसानीसे गुजरातके सम्मुख पेश कर सकता हूँ तथा मैं जानता हूँ कि गुजरातकी मार्फत उनका प्रचार हिन्दुस्तान में हो सकता है। इस समय जो जहरीली हवा बह रही है उससे गुजरात और हिन्दुस्तान मुक्त रहें--ऐसी मेरी उत्कट अभिलाषा है। वे मुक्त रह सकते हैं, यह बात में आजीवन मानता रहूँगा। सत्यरूपी सुगन्धमय पवनका तुरन्त प्रसार करनेमें जो देर हो रही है उसके कारणको मैंने सूचित कर ही दिया है। वह कारण यह जहरीली हवा ही है। अंग्रेजोंके प्रति क्रोध करके, मनुष्य-जातिके प्रति अविश्वास रखकर, एक-दूसरे पक्षपर दोषारोपण करके, परस्पर तिरस्कार-भाव रखकर देशका उद्धार नहीं किया जा सकता। तिरस्कार, दोषदर्शन ये सब रोगके, दुर्बलताके लक्षण हैं। दुर्बल व्यक्तियोंको हर ओर दुर्बलताके ही दर्शन होते हैं। दुष्ट सबको दुष्ट मानता है। साँप और बिच्छू सबसे डरते हैं। "आप भला तो जग भला", यह संसारका नियम है, उसे हम कैसे भूल सकते हैं?

रौलट अधिनियमके बारेमें भी दो शब्द कह दूं। यह अधिनियम अपने समय से पहले ही रद हो जायेगा, ऐसा मेरा विश्वास है और यह मेरे विचारानुसार कानून की सविनय अवज्ञाके रूप में सत्याग्रह आन्दोलनको फिरसे प्रारम्भ किये बिना ही होगा। लेकिन यदि वैसा न हो तो सत्याग्रह अवश्य ही फिरसे शुरू किया जायेगा, इस विषयमें मुझे कोई सन्देह नहीं है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ३०-५-१९२०