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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कदम उठानेके लिए उसके पास किसी भी ठोस कारणके होनेकी कल्पना नहीं की जा सकती।

यह तो पागलपनकी एक निशानी हुई। सिन्धसे जो समाचार मिला है यदि वह सही है तो जान पड़ता है वहाँके एक डिप्टी कमिश्नर पागलपनकी अन्तिम सीढ़ीपर जा पहुँचे हैं। खिलाफतके आन्दोलनको बन्द करवाने के उद्देश्यसे वह प्रतिष्ठित सज्जनोंपर दबाव डाला करता है, इतना ही नहीं बल्कि कहा जाता है कि उसने एक प्रतिष्ठित सज्जनको पीटा भी है। हम उम्मीद करते हैं कि बम्बईके गवर्नर महोदय इसकी पूरी जाँच करेंगे। लेकिन इस समय तो हमें इस बातपर विचार करना चाहिए कि हमारा कर्तव्य क्या है? अभी तो असहकार [आन्दोलन] शुरू नहीं हुआ है, लेकिन जब यह शुरू होगा तब उसे दबाने के लिए सरकार, निस्सन्देह जितना हो सकेगा उतना, जोर आज- मायेगी। उस समय वह कितनी बौरा जायेगी इसके बारे में कोई क्या कह सकता है? ऐसे समय यदि प्रजा निश्चल रह सके, शान्त रह सके और उसकी ओरसे जरा भी खून-खराबी न हो तो जनता बहुत उच्च आसनपर प्रतिष्ठित मानी जायेगी तथा खिलाफतके प्रश्नका अन्तिम निर्णय हमारे पक्षमें होगा, इस बारेमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है।

असहकार आदि विषयोंपर अन्तिम प्रस्ताव पास करनेके लिए बहुत जल्द ही खिलाफत समितिकी बैठक होनेवाली है। बहुत करके तीस मईको अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठक होनेवाली है। उसी समय सम्भवतः काशी अथवा प्रयागमें इस कमेटीकी भी बैठक होगी।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ३०-५-१९२०


२१८. असहकारमें कैसे ढील होती है?

'नवजीवन' का एक पाठक लिखता है:

उपर्युक्त पत्र में जहाँ-तहाँ प्रयुक्त विशेषण मैंने छोड़ दिये हैं। दूसरे आरोप तो बहुत हैं लेकिन उन्हें [यहाँ] देनेकी मेरी हिम्मत नहीं पड़ी। पत्र लिखनेवाले ने अपना नाम भी दिया है; उसे भी में यहाँ नहीं देना चाहता। कदाचित् उसने भी यह पत्र मुझसे व्यक्तिगत सलाह लेनेके लिए लिखा हो। तथापि जो भाग मुझे उद्धृत करने योग्य लगा उसे मैं उद्धृत कर चुका हूँ।

जबतक इतने ज्यादा गुस्से तथा वहमसे भरे हुए इक्का-दुक्का व्यक्ति भी जनता में हैं तबतक असहकार आदि अमूल्य अस्त्रोंका उपयोग करने में दिक्कतें आती रहेंगी।

१. देखिए " पागलपन ", २६-५-१९२०।

२. कांग्रेस कमेटीको बैठक ३० मईको बनारस में हुई थी। इसमें गांधीजीके असहयोग कार्यक्रमके सम्बन्ध में विचार करनेके लिए कलकत्ता में विशेष अधिवेशन बुलाये जानेका प्रस्ताव पास किया गया था।

३. पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है।