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पागलपन

सयुक्त प्रान्तमें सभीको मालूम है कि श्री जवाहरलाल नेहरूकी माता हमेशा अस्वस्थ रहती है। उनकी धर्मपत्नीकी तबीयत भी इस समय बहुत खराब है। नेहरू-परिवार समय-समयपर गर्मियों में हवा-परिवर्तन के लिए मसूरी जाता है। इस बार, ऊपर बताई गई बीमारीके कारण मसूरी जानेकी विशेष आवश्यकता थी। जब यह निश्चय हुआ तब यह बात उनके ध्यानमें भी न थी कि अफगानी-शिष्टमण्डलके प्रतिनिधि भी मसूरी जानवाले हैं, और जिस स्थानपर उन्हें ठहरना था उसी स्थानपर ये लोग भी ठहरनवाले हैं। तथापि मसूरीमें ठहरनेकी अधिक व्यवस्था न होने के कारण नेहरू परिवार तथा अफगानी-शिष्टमण्डलके प्रतिनिधियोंको एक ही स्थानपर जगह मिली। दोनों एक ही जगह रहें, यह सरकारी अधिकारिको बरदाश्त नहीं हुआ। इतना होनेपर भी स्थिति कुछ ऐसी थी कि श्री जवाहरलाल नेहरूपर एकदम दबाव नहीं डाला जा सकता था, इससे पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्टने उन्हें बुलाकर कहा कि--यदि आप यह आश्वासन देंगे कि आप इन प्रतिनिधियोंके साथ बोलचाल भी नहीं रखेंगे तो आपको मसूरीमें रहने दिया जायेगा। जिस व्यक्तिको आत्मसम्मान प्रिय है वह व्यक्ति ऐसी जमानत क्यों दे? भले ही प्रतिनिधियों के साथ कोई व्यवहार न हो, श्री जवाहरलाल पन्द्रह दिन- तक मयूरीमें रहकर भी इन प्रतिनिधियोंके साथ एक शब्द भी नहीं बोले, लेकिन स्वेच्छया बिना किसी प्रसंगके किसीके साथ न बोलना एक बात है और किसीके दबावमें आकर अमुक व्यक्ति के साथ न बोलनेकी प्रतिज्ञा करना दूसरी बात है। इसीसे श्री जवाहरलालने ऐसा आश्वासन देने से इनकार कर दिया। इसपर उन्हें तुरन्त ही मसूरी छोड़ देनेका आदेश दिया गया। श्री जवाहरलालने अधिकारीको सही स्थितिसे अवगत करा दिया था, अपनी कठिनाइयोंकी चर्चा भी की थी लेकिन [उनकी] मुश्किलोंसे अधिकारियोंको क्या लेना-देना हो सकता है?

यदि राजा अपनी रैयतके कमजोरसे-कमजोर अंगकी मुश्किलोंका ध्यान रखे तो वह रामराज्य कहलाये, प्रजातन्त्र कहलाये। आधुनिक युगमें किसी भी प्रजातन्त्र राज्यसे -फिर चाहे वह अंग्रेजी हो चाहे भारतीय, ईसाई, मुसलमान अथवा हिन्दू - ऐसी आशा नहीं की जा सकती। जिस यूरोपका अनुकरण करने के लिए हम अधीर हो गये दीख पड़ते हैं वह यूरोप भी पशुबलकी अथवा पशुबलके मुकाबले बहुमतकी पूजा करता है और बहुमतवाले भी हमेशा अल्पसंख्यकोंकी रक्षा करते हों सो बात नहीं । सामान्यतया आम विषयों में बहुमतके न्यायको लौकिक न्याय कहा जा सकता है, लेकिन शुद्ध न्याय तो सब लोगोंके कल्याणमें ही हो सकता है। इसलिए जहाँ दुर्बलसे-दुर्बल व्यक्तिकी भी पूरी-पूरी रक्षा की जाती हो और उसके अधिकारोंको भी पूरा-पूरा संरक्षण दिया जाता हो वह शुद्ध प्रजातन्त्र कहा जा सकता है। प्रजातन्त्रका अर्थ बहुमत द्वारा शासन नहीं बल्कि उसका अर्थ है कि उससे जनताके छोटेसे-छोटे अंगका भी पोषण हो। इस समय हम अपनी सरकारसे ऐसे न्याय और ऐसे पोषणकी अपेक्षा नहीं कर सकते। लेकिन सरकारने जो कदम उठाया है वह तो निरा पागलपन है, ऐसा

१. जवाहरलाल नेहरूको मसूरीसे चले जानेका जो आदेश दिया गया था, वह जून १९२० को वापस ले लिया गया था।